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________________ खण्डगिरिके लेख २ श्री कुमारपर्वतस्थाने जिर्णवापि जिर्ण इसण ३ उद्योतित तस्मिन थाने चतुर्विन्सति तीर्थकर 8 स्थापित प्रतिष्ठा (का) ले ह (रि) ओप जसनंदिक ५ ...श्रीपारस्यनाथस्य कर्मखयः - ९५ ] [ यह लेख राजा उद्योतकेसरीके ५वें वर्षका है । कुमारपर्वतकी वापी तथा मन्दिरोका जीर्णोद्धार करके चौबीस तीर्थकरोंकी मूर्तियों की स्थापनाका इसमें उल्लेख है । कुमारपर्वत खण्डगिरिका पुराना नाम है । अन्तिम भागमें जसनंदि ( यशोनन्दि ) का उल्लेख हुआ है । ] [ ए० ई० १३ पृ० १६६ ] ६४ खण्डगिरि - नवमुनि गुहा १०वीं सदी, संस्कृत - नागरी ५७ १ ओं श्रीमदुद्योतकेसरिदेवस्य प्रवर्धमाने विजयराज्ये संवत १८ २ श्रीश्रार्यसंघप्रतिवद्ध ग्रह कुळवि निर्गत देशी गणाचार्य श्रीकुलचन्द्र ३ भट्टारकस्य तस्य शिष्यशुभचन्द्रस्य [ इसका साराश जै० शि० सं० भाग २मे क्रमांक २४५ में दिया है । किन्तु उस समय मूल लेख प्राप्त नहीं हुआ था। इसमे राजा उद्योतकेसरीके १८वें वर्ष मे देशीगणके आचार्य कुलचन्द्रके शिष्य शुभचन्द्रका उल्लेख किया है । ] [ ए० इ० १३ पृ० १६५ ] ६५ खण्डगिरि - नवमुनि गुहा १०वीं सदी, संस्कृत नागरी १ ओं श्रीआचार्य कुलचन्द्रस्य तस्य २ शिष्य खल्ल शुभचन्द्रस्य ३ छात्र विजो
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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