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________________ मेलिगेके लेख ५६१ श्री जिनोदित सद्धर्म-कार्याणामादिमत्त्वतः । आदण्णाख्यो वणिग भाति नामान्वयें दधत् सुधीः ।। इन्तेसेव सकल-गुण-समन्वितराद मेळिगेय बोम्मण-सेट्टियर मक्कळ बोन्मणसेट्टियर (औरोंके नाम दिये हैं ) नाऊ तम्मोळेकस्तरागि नम्म अज बोम्मिसेट्टियर कट्रिसिद बस्तियनु सिलामयवागि कट्रिसि ॥ श्री-विश्वावसु-वत्सरे शुभतरे ज्येष्ठे च मासे सिते पक्षे सद्-दशमी-तिथौ सु-रुचिरे शुक्रे च वारे बरे । ऋक्षे चोत्तर-नाम्नि केसरि-महा-लग्ने प्रतिष्ठापितः पद्म-श्रेष्ठि-वरेण शास्त्र-विधिनानन्ताख्य-तीर्थेश्वरः ।। आ-श्रीमदनन्तनाथ स्वामिय नित्य-नैमित्तिक-पूजेगे । अमृतपडि । नन्दादीप्ति । अङ्ग-रङ्ग-वैभव-मुन्ताद समस्त-विनियोग-धर्म नडवदक्के बिट्ट भू-दान शासनद क्रम वेन्तेन्दरे ( यहाँ टानकी विस्तृत चर्चा तथा वे ही अन्तिम श्लोक आते हैं। मेलिगे बोम्मण-सेटर मकळ बोम्मण-सेटर पदुमण-सेटरु सि ( शि) लामयवागि कट्टि सद श्रीमदनन्तनाथ-स्वामि-चैत्यालयल्लि नडव धर्मद विनियोगक्के कोट्ट सर्वमान्यद स्वास्तेगे बरद शिला-शासन मुत्तूर हेगडेर वोप्पित बोम्मण्णमल्लण्ण वोप्य । [अनन्तनाथके लिये नमस्कार । जिन शासनकी प्रशंसा । अनन्त जिनेशकी स्तुति ।। ( उक्त मितिको ), बेङ्कट-देव रायको सूर्यकी उपमा। निस समय बेङ्कटपतिदेव-महाराय पेनुगोण्डेकी राजगद्दीपर बैठे थे, उनके सारे राज्यमें अवन्य-देश प्रसिद्ध था। उस देशमें, भुवनगिरिके पूर्वमें, आरग शहर था। उस नगरका शासक बेङ्कटाद्रि-महीपाल था। उसके गुणों का वर्णन | वेङ्कटाद्रि-नायकय्यका आश्रित बोम्मण-हेम्गडे या । उसकी प्रशंसा। वह मुत्तूरका शासक था। इसके एक स्थान मेळिगेमें, जो निडुवळ-नाडके कोडूरपाळमें था, राज-श्रेष्ठी वर्द्धमान था। उसकी प्रशंसा । उसकी पत्नी नेमाम्बा थी। उसके पुत्र बोम्मण-श्रेष्ठीने एक बिनमन्दिर बनवाकर उसमें अनन्त जिनकी प्रतिष्ठा
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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