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________________ teel कलमस्ति; -- संस्कृत तथा 收费建 I [ शक १४१२-१५२३ ई० ] [ कलबस्ति (बम्गुज्जी परगना ) में, कल-बस्तिके सामनेके एक पाषाणपर] श्री गणाधिपतये नमः । श्रीमत्परमगंभीरस्याद्वादामोघलाञ्चनम् । बीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं विनशासनम् ॥ श्रीमानादि-वराहोऽयं श्रियं दिशतु भूयसीम् । गाढमालिङ्गिता येन मेदिनी मोदते सदा ॥ नमस्तुङ्ग इत्यादि ॥ स्वस्ति श्री जयाभ्युदय - शालिवाहन शक वरुष १४५२ सन्द वर्त्तमान | विक्रतु-संवत्सरद । चैत्र-शुद्ध १० बुधवारदलु श्रोमतु अरि-राय- गण्डर दावणि बोम्मल- देवियर कुमार श्री-बीर भैररस वोडेयरु । कारकळद सिंहासनदति सुख-संकथा-विनोददिं राज्यं प्रतिपालिसुत्तिह कालदलि । अवर तनि काळत-देवियरु | बगुञ्जिप सीमेयनु स्व-धर्मदलु प्रतिपालिसुत्तिह कालदलु तम्म कुल - स्वामि कल बस्तिय पार्श्वन्तीत्थंकररिगे नित्य- धर्मक्के बिट्ट भूमिय क्रमवेन्तेन्दरे । तावु तम्म कुमारति रामा- देवि यरु | कालव माडिदलि । अवर हेसरलि । मादि धर्म्म ( यहाँ दानकी विस्तृत चर्चा आती है ) मंगल महा श्री गोम्मरस बिट्ट इळि ... यी भूमियनु नावु नम्म बगुञ्जिय सीमेय पूर्व प्रधानिगळु महाजनङ्गल हलरु नाडु कोलबिलियर मुन्तादवर् समस्त साक्षियति स - हिरण्योदक-दानधारा - पूर्वकवागि धारेय-नेदु कोट्टेषु आ-चन्द्रार्क - स्तिरवागि कोट्टेषु । हरगोल बोणिय गदेय का बस्तिय देवर अमृतपडिगे पूर्वदल्लि बिट्ट दा नम्म क कालव दल्लि बिट्ट भूमि व ६ उभय बीजवरि रव ११ भूमियन देवरि बिट्टेषु इदके राणिक अन्तिम श्लोक ) SO बरसिद कल्ल - शासन ( हमेशाके ३३
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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