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________________ होगेकेरीके लेख स्तोमं गीष्पतिवारमोन्दिरे मनो-वाक्-काय-शुद्धं चतुस्सीमान्तोवियनष्ट-भोग-सहितं हेमाम्बु-धारा-युतम् ॥ प्रभुगळ पुर-जन-परिचन-1 सभासदमचे साळुवेन्द्र-नृपाळम् । विभवदि पद्मण मन्त्रिगे। शुभमस्त्वेदोगेयकेरेयनवनोल्दित्तम् ॥ अन्तु स-हिरण्योदक-दान-धारा-पूर्वकमागि कोट वोगेयकेरेय-प्राम-वोन्दर चतुस्सीमेयोळगण गद्दे-बेद्दलु-तोट-तुडिके-कळ-मने-कोठार-होन्नु-होम्बळि-वरि बङ्गु-काणिकेकड्डाय बेडिगे बिनगु-बेसवोक्कलु-अङ्क-सुङ्क-टङ्कसाळे-तळवारिके निधि-निक्षेप-जलपाषाण-अक्षिणि-आगामि-सिद्ध-साध्यमेम्बष्ट-भोग-सर्व-स्वाम्य-सादाय-प्राप्ति-सहित मागिया-चन्द्रार्क-स्थायियागि पद्मणामात्यननुभविसुवुदेन्दु कोट्ट सर्वमान्य-प्रामदान-शासन-वचनम् ॥ [ जम्बूद्वीप, भरतक्षेत्र, उसमें तौलव-देशका वर्णन । उसमें संगीतपुर नगर तथा उसके राजा शाळेवेन्द्रका वर्णन । जिस समय महा-मण्डलेश्वर शाळवेन्द्र-महाराज सुखसे राज्य कर रहे थे:सुन्दर, ऊँचे-ऊँचे चैत्यालयों, मण्डपसमूहों, घण्टी सहित मानस्तम्भों और उद्यानोंसे सालुवेन्द्र धर्मको बढ़ा रहे थे। उनकी सेवामें तत्पर पद्म नामका व्यक्ति था। यह पद्मण ( पद्म ) हमारे खानदानमें से हुआ है अतः राजाने मन्त्री-पद्मणको ओगेयकेरे नामका गांव दिया। उस गांवमें बहुतसे शस्य (चावल) के खेत ये । ये सब उसने उसको दिये तथा इन सबका शासन (लेख) मी लिखकर दिया । [ EC, VIII, Sagar tl., No 183, Ist part ]
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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