SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 485
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चित्तौड़के लेख ['रायमल्ल' स्पष्टतः वही राबमल्ल है बो कुम्भकर्ण का पुत्र है, और उसके लिये विक्रम सं० १५४३, इस लेख द्वारा निर्दिष्ट, सबसे पूर्ववर्वी मिति है । लेखमें खरतरगच्छके जिनसमुद्र-सूरि द्वारा सुकोशलेश या ऋषभदेव तथा अन्य तीर्थों (चो कि दो से अधिक नहीं हो सकते हैं, क्योंकि पाषाणपर उत्कीर्ण केवल ३ मूत्तियोंका ही उल्लेख है । ) की प्रतिमाओंकी स्थापनाका वर्णन है । ] नोट :-जिनसमुद्रसूरिके विषयमें जानने के लिये Ind. Ant. Vol XI. p. 249, No. 58 देखना चाहिये । [ AS WI, Progress Report 1903-1904, p. 59. t.] होगेकेरी;-संस्कृत तथा कन्नड़ । [शक १४०६=११८७ ई.] [ होगेकेरीमें, पार्श्वनाथ बस्तिके एक पाषाणपर ] श्रीमत्परमगंभीरस्याद्वादामोघलाञ्छनम् । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् ।। श्रीमद्भू-भुवन-प्रसिद्धतर-जम्बूद्वीप-मध्यस्थ-तुङ - । गामाचल-दक्षिणान्स्य-भरता--खण्ड-नैऋत्य-दिक- । सीमोपाब्धि-तटोपकण्ठ-विलसद्-वर्णाश्रमाकीर्ण भू-। धामं तौळव देशमिप्युटिळेयो सप्ताङ्ग-सम्पत्तियिम् ।। अदरोळ् माङ्गल्यगेहं बहु-विध-विभव-प्रोल्लसच्चैत्यगेहम् । सुदती-सन्तान-जन्मालयमखिल-सुखि-त्यागि-भोगि-प्रवाहम् । मदवद्द -हत्यश्व-यूथ-प्रबळ-पटु-भटाकीर्णमुत्तुङ्ग-सौधोदय-राबद्-राज-संगीतपुरमदेशेयल प्रौढ़-सङ्गीयमानम् ॥ कवि-गमकि-वादि-वामि। प्रवेक सङ्गीत-विषय-साहित्य-रसो-।
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy