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________________ भारती लेख अभवं श्री - वीतरागं तनगे निनदोळं दैवमा-योगि ... | विभु सिद्धान्ताख्यराराध्यरु बिन-मत- वाराशि - संपूर्ण चन्द्रं । प्रभु बुळ्ळप्यं पितं भासुर - गुणवति मझब्बे तायेन्दोडी-सद्विभ नोन्तर् अरियिरे धरणी - चक्रदो भागीर् [ अ ] थि निरुपम - सौख्य यिप्प 11 ... भद्रमस्तु सुखमय . . . ... ... ... [ EC, VIII, Sorab tl, No. 331 ] ६४२ ... YEE [ भागीरथीका, जैन विधि - पूर्वक, मृत्युका स्मारक यह है। उसके पिताका नाम प्रभु बुल्लप्प, और मका मलब्बे था ] प्रीतियं ... चितौड़, संस्कृत | [ सं० १५१४ = १४५७ ई० ] [ एक चिकनी चट्टानपर जिसके बीच में चरण- चिह्न हैं और जिसके अन्तमें गणेश और भैरवकी मूर्त्तियाँ हैं । ] ( १ ) ॥ संवत् ५१४ ( १५१४ ) वर्षे मार्च (र्ग ) शुदि १ श्री भर्तृपुरीयगच्छे श्री चूड़ामणि- भर्तृपुर-महा-दुर्गे श्री-गुहिलपुत्रवि ( २ ) हार - श्री - बडादेव - आदिजिन -वामाने दक्षिणाभिमुखद्वारगुफा ( फा ) यामेकविंशति देवीनाम् चतुर्णाम् ... पा ( ३ ) लानाम् चतुर्णाम् विनायकार्ना च पादुका-घटित सहकार सहिता च श्रीदेवी- चिचोदरि - मूर्ति ( र्तिः ) स्था ( पिता ? ) (४) श्री भर्तृ ' गच्छीय-महा-प्रभावक श्री आनदेव-सूरिभिः || अस्यां मूर्ती सा० सोमा - सु० - सा०-हर पालेन मातृ-लोकपुण्योपार्जना व्यधीयत । (५) श्रेयसे
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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