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________________ माण्ट निगल्लुके लेख ६२७ माष्ट निडुगल्लु [ बिना काल-निर्देशका, पर लगभग १४५० ई० १ (लू. राइस) 1] [ निगह- बेहपर मळे-मल्लिकाज्जुन मन्दिरके पालके पाचाणपर ] श्री-मूल-संघद वृषभसेन -भट्टारक- देवर गुड वैश्यर रामि-सेडियर मग बिमी- सेट्टिय हेण्डति चन्द्रवेय निषिधि ॥ ↑ [ मूलसंघके वृषभसेन भट्टारक के गृहस्थ-शिष्य, वैश्य रामि-सेट्टिके पुत्र बिमोसेट्टिकी पत्नी चन्द्रवेका स्मारक यह है । ] [ EC, XII, Pavugada tl, No 56] ६३८ पर्वत आबू ; - संस्कृत [ सं० १५०३ = १४५२ ई० ] श्वेताम्बर लेख । [ Asiat. Res. XVI, p. 311, No XXI, . ] ६३९ टोंक) - संस्कृत ( देवनागरी लिपि ) [ काक-सं०] १९१० = १४५३ ई० ] टोंक (राजपूताना ) के नवाब के महलके पास बनवरी सन् १६०३ ई० में खुदाई होनेसे अचानक ११ जैन प्रतिमाएँ निकलीं। ये प्रतिमाएँ भिन्न-भिन्न ११ तीर्थकरों की हैं, जो पद्मासन स्थित हैं, गोदके ऊपर जिनके बाएँ हाथके ऊपर दाहिना हाथ है और दाहिने हाथकी हथेलीका मुख ऊपरकी तरफ है। ये * सब प्रतिमाएँ समानाकृति है, सिर्फ पार्श्वनाथ और सुपार्श्वनाथकी प्रतिमाके ऊपर सर्पका फण है तथा और प्रतिमाओंपर उनके भिन्न-भिन्न लाञ्छन (चिह्न)
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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