SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 465
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ काफलके लेख ६२७ कार्कल–कन्द । [ शक सं० १३२८१४३६ ई० ] [ गोम्मटेश्वर मूर्ति स्तम्भके सामनेके ब्रह्मदेव स्वम्भ पर ] १. शकनृपन १३५८ राक्षससंवत्सर [द फाल्गुन शु २. १२ लु ॥ जिनदत्तान्वय भैरवतनय श्री [ वी ]रपां३. ख्यनृपतिगे वरमं । मनमोलदीय [लु ] नेल [ सि ] द ४. बिनभक्त ब्रह्मनीगे निमगभि [ मत ] मं ॥ 1 ३१ अनुवाद - शक नृपके राक्षस नामके १३५८ वें वर्ष में फाल्गुन शुक्ला १२ के दिन, जिनदत्तके वंशमें होनेवाले भैरव के पुत्र श्री वीरपाण्ड्य नृपतिकी प्रत्येक इच्छाको पूर्ण करने के लिये यहाँपर प्रतिष्ठापित, चिनभक्त ब्रह्म [ की प्रतिमा ] तुम्हारी [ प्रत्येक ] मनोकामनाको पूरा करे । [ EI, VII, No., 14 E. ] ६२८ देवगढ़ : -- संस्कृत | [सं० १४१३ तथा शक १३५८ = १४१६ ई० ] ( पंक्ति ५ ) - संवतु १४६३ शाके १३५८ वर्षे वैशाष ( ख ) - वि (व) दि ५ गुरै (रौ) दिने मूल नक्षत्रे ॥ ४८१ बृहस्पतिवार, ५ अप्रैल १४३६ ई० शक १३५८ -- देवगढ़ जैन शिलालेख । [ INI, Nos. 287 & 375. ]
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy