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________________ जैन-शिलालेख-संग्रह ११. श्री वोरपाण्डयेशिना नि१२. माप्य प्रतिमाऽत्र पा. १३. हुपलिनो जीयात् प्र१४. तिष्ठापिता ॥ शकवर्ष १५. १३५३ श्री पाण्ड्य राय ॥ [शक राजाके विरोभ्यादिकृत् वर्ष, अर्थात् १३५३३ वर्षके फाल्गुन शुक्ला १२, बुधवारके दिन सोम वंशके मैरवेन्द्र के पुत्र श्री वीर पाण्डयेशी या श्री पाण्ड्यरायने यहाँ ( कारकलमें ) बाहुबलकी प्रतिमा बनाकर प्रतिष्ठित कराई । वह प्रतिमा नयवन्त रहे । यह कार्य उन्होंने देशीगण के पनसोगे शाखाकी परम्परामें होनेवाले ललित कीति मुनीन्द्र के उपदेश से किया । ] [ EI, VII, No. 14, C. IA, II, q: 353-354 ] श्रवणवेल्गोला-संस्कृत ।। [शक १३५५=१४३२ ई.] __ [जै. शि० सं०, प्र. मा.] ६२६ आनेवाळु-कबद । [कार-वर्ष प्रमादीव = १४३३ A. D. ] . [आनेवाळुमें ध्वस्त बस्तिकी छोटी सी जैन-प्रतिमाके पृष्ठपर ] प्रमादीच-संवत्सरद फाल्गुन-सु १०मी भानुवार अनन्तन प्रतिमे [अनन्तकी प्रतिमा ] [ EC, IV, Hunsur tl., No. 60, t & tr.]
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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