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________________ विजयनगरके लेख शाकेन्दे प्रमिते याते वसुसिंधुगुणेंदुमिः। पराभवादे कार्तिक्यां धर्मकीर्तिप्रवृत्तये ।। [१७] त्याद्वादमतसमर्थ [न] खतिदुर्वादिगम्वाग्विततेः । अष्टादशटोत्रमहामदगजनिकुरुंबमहितमृगराजः ॥ [१८] भव्यांभोरुहभानोरिंद्राटिसुरेंद्रवृंदवंद्यस्य । मुक्तिवधूप्रियभत्तः श्रीपार्श्वजि[ने]श्वरस्य करुणाब्धेः ॥ [१८] भव्यपरितोषहेतं शिलामयं सेतुमखिलधर्मस्य । चैत्यागारमचीकरदाधरणिधुमणिहिमकरस्थैर्यम् ॥ [२०] सारांश विजयनगर प्राचीन समयमें जैनियोंकी राजधानी थी। शक १२७६ ( सं. ११४२) से यादववंशी दि. जैन राजाओंका राज्य था। इस वंशकी वंशावली निम्न भांति है : १. यदुकुल के बुक्क २. उसके पुत्र, हरिहर (द्वितीय), 'महाराब' ३. उसके पुत्र, देवराज (प्रथम) ४. उसके पुत्र, विजय या वीर-विजय (पं. २)। ५. उसके पुत्र देवराज (द्वितीय), अभिनव-देवराज । अन्तिम महाराजा देवराजने अपने पराक्रमके कृत्य और अपना नाम अजरा-. मर करने के लिये अपने राजमहलके पास 'पान-सुपारी-वाचार' ( पर्ण-पूगीफलापण, श्लो० १६ ) नामक बगीचे में एक चैत्यालय ( चेत्यागार ) बनवाया और मन्दिर में श्रीपाश्वनाथस्वामीकी प्रतिमा विराजमान को ।। ____ नोट :-इस वर्णित विजयनगरके प्रथम या यादव वंशावलिके क्रममें बुकके पिता और बड़े भाई के नाम तथा वे शक मितियां, जिनका लेखमें कोई संकेत
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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