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________________ हुम्पचके लेख २६७. हुम्मच;-संस्कृत तथा कार। [कार=सक १३२१=१५६६ ई.] [पार्वनाथ बस्तिके मुखमापके तीसरे पाषाणपर ] श्रीमत्परमगम्भीरस्याद्वादामोघलाञ्छनम् । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् ॥ स्वस्ति श्रीमतु शक वरुष ( वर्ष ) सा १३२१ नेय बहुधान्यसंवत्सरद मानेंसिरसुद्ध ४ ... ... श्रावण-नक्षत्रद ... ... मलप्पगळ मग होम्बुच्चद यिं ... पायण्ण सकल-सन्यसन-सल्लेखन ... दणियं सरीर-भारमै बिटु स्वर्गस्तरादरु मङ्गळ श्री श्री [होम्बुच्चके पायण्णने सन्यसन और सल्लेखनाके द्वारा अपनेको अपने शरीर-भारसे मुक्त किया और स्वर्ग प्राप्त किया । यह उसीका स्मृति-लेख है।] [ EC, VIII, Nagar tl., No. 51, t. & tr.] ५९८ हिरे-आवलि;-संस्कृत तथा कथा । [सक १३२१-१६६ ई.] [हिरे-मावळिमें, पाँच वें पाषाण पर] श्रीमत्परमगंभीरस्यावादामोघलान्छनम् । बीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं बिनशासनम् । स्वस्ति समस्त-भुवनाश्रय पृथ्वी-वल्लभ महाराजाधिराजं अश्वपति गजपति नरपति पूर्व-दक्षिण-पश्चिम-समुद्राधीश्वर श्रीमद्-गय-राजधानि-हस्तिनापुर-विजयानगरनुख्यवाद समस्त-पट्टणाधीश्वर श्री-हरिहर-राय राज्यं गेय्युत्तमिप्प कालदल्लि । २८
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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