SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 415
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ x२४ जेन - शिलालेख संग्रह ५८८ ऊद्रिः - संस्कृत तथा कन्नड़ । [ वर्ष विभव = १३८८ ई० ( लू० राइस ) । ] [ उसी तालाबकी मोरोके पासके पाषाणपर ] श्री - शान्तिनाथाय नमः । श्रीमत्परम- गंभीर स्याद्वादामोघलानम् । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं निन- शासनम् ॥ वर - वृषभ-तीर्थंकर गण- 1 घररेनिसिद वृषभसेन -मुनि-पुङ्गवरुद्- । धुर- वंश-सम्भवाचा - 1 यर पेम्पं पोगळलदिपने फणिरमणम् || आ-नियमाप्रणिगळु जिन । सेन - श्री वीरसेन र निपाचार्थम् । भू-नुत चरित्ररवरम् | बानिक विन्य-ननद पेम्यदाम् ॥ अमर्द तदन्वयदि बन् द मुनीश लक्ष्मिसेन भट्टारकरुत्- । तम-चरित्ररवर शिष्यरु | विमळ-गुणरु चन्द्रसेन - सूरिगळनघर् ॥ आ-मुनि-रावर शिष्यो- । दामरु मुनिभद्र देवरवर चरित्रम् | भू- महितमेन्दोडदनिन्न् । ए-मतो बण्णिसल्के वनावम् ॥ वृ ।। चेमममन्विनं विमल - कीर्त्ति दिगन्तमनेय्ददुव्विनम् ।
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy