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________________ मसारके लेख न०३ [शंख चिह्नवाली नेमिनाथकी प्रतिमाके पीठ-स्थलपरका लेख] १-सं० १४४३, ज्येष्ठ सुदि ५, गुरो महासारस्य न (१) २-काष्ठसंघे अचार्च-कमलकोत्ति देव ३-जै महन्साचार्ज उदे सिदि उसी गजा और उसी गुरूके तत्वावधानमें उसी दिन नेमिनाथकी प्रतिमाका दान। [ A. Cunningham, Reports, III, p. 68-69 No. 1-3.] t. & a. ५८७ तिरुप्पत्तिक्कुण्रु;-संस्कृत । प्राभव (प्रभव) वर्ष = शक १३०१=३८० ई. (हुरुङ्ग और चीन)] श्रीमद्वैचयदण्डनाथतनयस्संवत्सरे प्रामवे संख्यावानिरुगप्प-दण्डनृपतेश्श्रीपुष्पसेनाजया ॥ श्री काश्चीजिनवद्धमाननिलयस्याग्रे महामण्डपं सङ्गीतार्थमचीकरच्च शिलया बद्धं समन्तात् स्थलम् ॥१॥ [ पूर्व शिलाले वाले मन्दिरकी वेटीके सामनेके मण्डपकी छतमें यह ग्रन्थलेख उत्कीर्ण है। इसमें शार्दूलविक्रीडित छन्दका एक ही श्लोक है। इसमें उल्लेख है कि प्राभव (प्रभव ) वर्षमें गुरु पुष्पसेनकी आजासे सेनापति वैचपके पुत्र उसी ( पूर्व वर्णित ) सेनापति इरुगप्पने उस मण्डपको बनवाया है बिसमें यह लेख उत्कीर्ण है।] [EC, VII, No. 15, B.]
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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