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________________ विजयनगर के लेख सिंहनन्दि, 'गणभृत्' I भूष, 'भट्टारक' 1 वर्द्धमान I धर्मभूषण द्वितीय, उर्फ भट्टारकमुनि ४२१ लेखमें इन गुरुओंकी पदवियाँ ये लिखी हैं :- आचार्य, आर्य, गुरु, देशिक मुनि और योगीन्द्र | गुरुवंशावली के बाद ही प्रथम विजयनगर वंशके दो राजाओं, बुक्क और उसके पुत्र हरिहरका संक्षिप्त वर्णन है । बुक्क यादववंश के राजाओंमें उत्पन्न हुआ था । हरिहरका कुलकभागत मंत्री दण्डाविनायक चैच या चैचप था, जो बिन भक्त था । चैचका पुत्र दण्डेश या क्षितीश ( युवराज ) इरुग या इरुगप था, जो उपर्युल्लेखित सिंहनन्दि गुरूके सिद्धान्तोंका उपासक था ( श्लोक २४ ) । १३०७ [ अतीत ] शक में, क्रोधन संवत्सर में इरुगने विजयनगर में एक मन्दिर बनवाया और उसमें श्री कुन्थु-बिननाथकी स्थापना की । यह नगर कर्णाट प्रान्त के कुंतल जिलेमें था ( श्लोक २५ ) । ] नोट :- इस मंत्री इरुग या इरुगपने 'नानार्थनाममाला' नामक ग्रन्थ बनाया था, ऐसा ई० हुल्श, पी० एच० डी० महाशय के लेखसे मालूम पड़ता है । [ South Indian ins, Vol. I, No. 152. (p. 155-160)]
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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