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________________ ૪૦ जैन - शिलालेख - संगह मणिकुट्टिमवीथीषु मुक्तासैकतसेतुभिः । दा[]][बूनि निरुंघाना यत्र क्रीडति बालिकाः [ ॥ २७] र्तास्मन्निरुगदंडेशः पुरे चारुशिलामयं । श्री कुन्थुजिननाथस्य चैत्यालयमचीकरत् || [ २८ ] भद्रमस्तु बिनशासनाय || सारांश इस लेख में २८ संस्कृत - श्लोक हैं और यह प्राचीन जैन मन्दिर के सामने दीपस्तम्भ पर खुदवाया है इस मन्दिरको आजकल 'गाणिगिट्टी' मन्दिर, यानी, " तेलिनका मन्दिर" कहते हैं। पहले श्लोकमें बिन, दूसरेमें जिनशासनकी मंगलकामना है । तत्पश्चात् एक जैन संघके प्रधान सिहनन्दिके आध्यात्मिकपूर्वजों तथा शिष्योंके वंशका वर्णन है । वह इस तरह है : : मूलसंघ 1 नन्दिसंघ बलात्कार गण 1 सारस्वतगच्छ 1 पद्मनन्दी धर्म्मभूषण प्रथम, 'भट्टारक' 1 अमरकीर्ति 1
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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