SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 400
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तवनन्दिके लेख श्रीमन्महामण्डलेश्वरं अरि-राय-विभाड भासेगे तप्पुव-रायर गण्ड हिन्दु-रायसुरत्राण पूर्व्व-दक्षिण-पश्चिम- समुद्राधीश्वर श्री वीर बुक्क-रायन कुमार श्री हरिहर ययनुराज्यं गेय्युत्तमिति ॥ स्वस्ति श्री जयाभ्युदय शक-चरुष १३०१ नेय 'काळयु [ फ्रि ]- नाम -संवत्सरद पुण्य ब ३ सोमवारदलु श्रीमाळुषमहाप्रभु प्रजे मेच्चे गण्ड अलिय हदिनेण्टु-कम्पणक्के शिरोमणि एनिए महाप्रभुगळादित्य तवनिधिय बोम्म- गोडनु सकल-सन्यसन - विवियि मुडिपि स्वर्ग प्राप्तनादनु || आतन गुणावलि एन्तेन्दडे || पारावार-त्रयाधीश्वरनतुळ-बळं-बुक्क-राय लोका- । विनय धर्मङ्गळं जैन-का धारङ्ग चारं ळे गड ...... कारं परस यादि देव परद दरिसिद जैननो कलि परम-निनेश्वर ... ... ... ... ... मर ... कीर्त्ति वृत्तं तवनिधि यधिपं ... माडि पुण्या- । बोम्मणं मेरु- धैय्र्यम् ॥ तान् पाकनिन्दु भक्ति यिम् । नेम्ब *** I दृढ़-चित्तनी तवनिधि प्रभु ब्रह्मनि क-लोकदोळ् । जिन-पतियन्तरङ्गदोळ्गर्पं ( बाकी का पढ़ा नहीं जा सकता । ) ... ... बगं ...... | You ... [ बिन शासनकी प्रशंसा । जिस समय, ( अपने पदों सहित ), वीर-बुकरायके पुत्र हरिहर - राय शासन कर रहे थे : - ( उक्त मितिको ), आळुव महाप्रभु, १८ कम्पणोंका शिरोरत्न, महा-प्रभुओंका सूर्य्य तवनिधि बोम्म - गौड 'सन्यसन' की विधिपूर्वक मर कर स्वर्गको गया । उसकी प्रशंसा ।] [ EC, VIII, Sorab tl., No. 196 ]
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy