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________________ जैन-शिलालेख-संग्रह ५७७ तवनन्दिकाड़-मग्न । [शक १०१३..] [वन्दिमें, सातये समाधि-पाषाणपर ] श्रीमन्महा-मण्डलेश्वर श्री-वोर-हरिहर-पय विषय-राज्यं गेय्युत्तमिति शक-वरुष १३०१ दनेय काळयुक्ताक्षि संवत्सरद श्रवण-शुद्ध १ शुक्रवारदलु श्रीमत्तनिधिय शान्ति-तीर्थकर-पाद-पद्माराधक- दासि-वेसि-पर-नारी-सहोदर श्रीमतु भीमनाव-महा-प्रभुतवनिधिय बोम्मणं मनेय ... ... नि श्रोरा ... ......... मलधारि-देवर प्रिय-गुड्डु ... ... ... (४ पंक्तियां पढ़ी नहीं जा सकती है)। [जिस समय महामण्डलेश्वर वीर-हरिहर-राय विजयो राज्य पर शासन कर रहे थे:-( उक्त मितिको ), तनिधि के शान्ति-तीर्थकरके चरणोंका पूजक, एक दासीके वेषमें, रा ....... मलपारि देवका गृहस्थ-शिष्य, आळव-महा-प्रभु तवनिधि बोम्मणके घरका पवित्र व्यक्ति,..............] [ EC, VIII, Sorab tl., No. 200.] तवनन्दि; काचा-भग्न । [शक १३.1३७६ ई.] [बन्दिमें ही, तीसरे समावि-पाषाणपर] भीमत्परमगम्भीरस्याद्वादामोघलाञ्छनम् । बीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिन-शासनम् ॥
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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