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________________ ૩૬૪ जैन - शिलालेख - संग्रह भक्षिसुवातन सन्ता - | न द्रयमायु-दयं कुळ- यमक्कुम् ॥ श्री-मूहासंघ - देशिगणं- पुस्तक - गच्छ कोण्ड-कुन्दान्वय श्री- मूलसंघ, देशि गम, पुस्तक-गन्छ, तथा कोण्कुन्दान्वयमें चारुकीत्तिंपण्डित-यति थे । बिन शासनकी प्रशंसा । बिस समय महामण्डलेश्वर, संगमेश्वर के पुत्र वीर-बुक - महाराय राज्यका शासन कर रहे थे' हेदूर - नाड्के तडताळके पार्श्व-देव मन्दिरकी जमीन की सीमाओंके विषय में जब हेदूर-नाड्के लोगों और मन्दिरके आचार्यों में झगड़ा चल रहा था, - प्रधानमंत्री नागण्ण और अनेक अरसू लोगोंने, इसकी जांच-पड़ताल करके, फैसला कर दिया। और इस बातका शासन (लेख) लिख दिया । 1 [ EC, VIII, Tirthahalli 1., No. 197 ] ...... ५६२ हिरे आवलिः - कमर [ शक १२२६ (Sio), वर्ष पार्थिव = १३६३ ई० १ ( लू. राइस) । ] [ हिरे-महि में, ध्वस्त जिम-बस्ति के सामनेके द्वितीय पाषाण पर ] "श्रीमतु । विजयानगर - मुख्यवाद- समस्त पट्टणाधीश्वर श्री-अभिनव बुकराय राज्यं गेटवल । सकल-गुण-सम्पन्न सिद्धान्त - देवर गुड्डु । रत्न-त्रयाराधकरुम् । आवलिय बेख - गौण्डन सुत चन्द - गौण्डन तम्म । सक-वरुप १२२६ मेय पास्थिव संवदर ब १९ सोमवारदलु । सन्यसन-समाधि - विधि‍ि मुडिहि स्वर्ग-प्राप्तियादनु । मङ्गलमस्तु । मानव ...... लनु -1 मानदोळं नडिय बहूमोल्दा-तेरदिम् 1 ज्ञानगळ सलहुतिप्पम् | दान रतं रा • पुरकभिरामन् ॥
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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