SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 360
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૨૪૧ नवसे यिनोपिन्दाद् ि। इवन - बोला णिगळेनिसि नेगळूदं बगदोळ् ॥ "I मत्तवधिक - वलदिं किरिदलु ... ... ... • निपं समस्त पुरुषा- ! - निधानं माच - गौण्डनस्थि - निधानम् ॥ मार-गौण्ड ......... ...... 800 वारिनिधि-वेष्टितो विँयो । ळारं तन्नन्नरिल्लेनिप्पं गुणदिम् ॥ लोकापकार-कारण- । क-कमव ..... ... जैन - शिलालेख संग्रह निधानम् ॥ मातृ-पितृ भक्त नखिळ- । ख्यातं पुण्य-क ... नी-लोकदोळगे लोकं बडेवं ॥ त्रिमूर्ति I धर्म-तीर्थं प्रवर्त्तिसुत्र ...... ... क तम्मनम्मङ्गणुगम् ॥ आदि-गौण्डन गुरु-कुळ- क्रमवेन्तप्पुदेन्दडे । श्रीमद्-इमिळ द्रस्यामिन्दि 1 ... ... .. ... ... • वारिसि पर वृन्द- वंद्य श्री पादरशेष-शास्त्र-वाद्धिंग गुण- घनं श्री वासुपूज्य मुनि ...... वादीश्वर हित - व्यापार देवर- शिष्य पेरुमाळे - देवरिगे ' न्तोषेद बसदि माडिसि श्री- देवर-प्रतिष्ठेयं माडिसि आ - देवरष्ट विधार्च्चनेगं रिषियराहार-दानवकं खीणद्वाक्कं नडवन्तागि बिट्ट तळ-वृत्ति ( आगेकी ५. पंक्तियों में दानकी चर्चा है ) सक-वर्ष ११७० प्लव-संवत्सरदुत्तरायण-राण-व्यतीपातदन्दु तेनेय रायण......R
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy