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________________ जैन-शिलालेख संग्रह काळाखन हरुकोळके पहाड़ी किलेका नाम था। यह देखकर कि इसकी चोटियां बहुत ऊँची है, लोगोंने इसका नाम निडुगळ रख दिया। उस पर्वतके बदर तालाबके दक्षिणकी तरफ एक चट्टानके सिरेपर गङ्गेयन मारने पार्श्व-चिन बसति खड़ी की थी। इसीको 'बोगटिगे बसदि' भी कहते थे। पार्श्वनाथ-बिनेशकी दैनिक पूजा, महाभिषेक करनेके लिये, तथा चतुवर्णको आहार दान देनेके लिये गङ्गेयन मारेय तथा उसकी स्त्री बाचलेने इरुङ्गल-देवसे आ-चन्द्र-सूर्य-स्थायी दान करनेके लिये प्रार्थना की और उसने तब यह (उक्त) भूमियोंका दान किया; तथा गङ्गेयनमारेयनहल्लिके कुछ किसानोने मिलकर बहुतसे (उक्त) अखरोट और पान प्रति बोझपर दिये: पैलिके किसानोंने भी कोल्हुओंसे तेल दिया । वे ही अन्तिम श्लोक । ] [ EC, XII, Pavagada tl., No. 51 and 52 ] ४७९ गिरनार;-संस्कृत। [सं० १२८८-१२८१ = १३.] श्वेताम्बर सम्प्रदायका लेख । [ Revised List ant. rem. Bombay ( ASI, XV1), p. 361, No. 3A, t. and tr.] ४८० पर्वत आबू:-संस्कृत। [सं० १२६० - ११३३१०] श्वेताम्बर लेख। TEL, VIII, No. 21, No. 19-23, t.]
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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