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________________ पूर्व- मुख पुरले के लेख व्यय-संवत्सर-पुष्यद । बहुळद बारसिय कुजन वारदोळ् सद्- | विनय-निधि बाळचन्द्र | सु-समाधियं मुडिपि नाकमेय्दिदनीगळ् ॥ अतिथिगम् ... | प्रतिभा प्रागल्भ्य मनु-मुनिग् I रुत-वाडिगळ दानम- । वतिशयमी - बाळचन्द्रनुळळन्नेवरं ॥ ळले बुध-समिति सिश्टर | बळगं मेल्मल्लने मरुगे दान - विनोदम् । प्रल - प्रक्षोभवोल । कळि श्री बालचन्द्रनभिनव - चन्द्रम् ॥ पश्चिम मुख मनमं निपमिसल रियर । त्तनुमं तो मुनि मुनिये | मनमं तनुव नियमिस । लनुदिनमी नेमि देवनोर्व्वने बल्लम् ॥ ... ३१६ [ ( उक्त मितिको ) विनयनिधि बालचन्द्रने समाधिमरण किया और स्वर्ग प्राप्त किया । ( उनकी प्रशंसा ) | मन और काय दोनोंके दैनिक नियमनमें, नेमि देव ही अकेले योग्य हैं। ] [ EC, VII, Shimoga tl., No. 66.] ४७० सौदचिकन | [ शक ११५१ = १२२६ ई० ] शिलालेखका परिचय यह शिलालेख कुन्तलदेशके अन्तर्गत कुण्डी जिलेके अधीश्वर राष्ट्रकूट वंश के लक्ष्मण या अक्ष्मीदेव प्रथम के प्राथमिक वर्णनके बाद लक्ष्मीदेव द्वितीयका वर्णन करता है। ल० द्वि. कार्त्तवीर्य अतुर्थ और मादेवीका पुत्र था । इस तरह यह लेख और शिला लेखों की अपेक्षा रट्टोंकी वंशावलीको एक कदम
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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