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________________ P जैन-शिलालेख संग्रह ५३९ नितूर-कबद। [विना काल-निर्देशका, पर लगभग १२००० का] [नितूरु (गुडिव परगना ) में, आदीश्वर बस्तिकी उत्तरीय दीपाळमें एक पाषाण पर] भी-मूल-संघ-देशिय-गण-पुस्तक-गच्छ-कोण्डकुन्दान्वयद श्री (य) अमयचन्द्रसिद्धान्तिक चक्रवलिंगळ प्रिय-शिप्यगगमाम्बुनिधिगळं सकळ-गुणाकळितक्रमप्प बाळचन्द्र-पण्डित-देवर प्रिय-गुड्डियरु ।। विनय-निधि माळियक्क । अनुपम-गुणमन्ते बामि-सेट्टिगळं ताम् । चिन-भक्तियिन्दे पडेदळु । जिन-भक्तप्पंडेव पडवुयोगळलळुम्बम् ॥ शोळान्विने चौडलेगं । माळवेय तनूज मलि-सेट्टिगे सुतेया-। व्याळ-गन-गमने पनले । बाळक-माळिक्य मल्ल-माळात्मजरुम् ॥ मुळिदु बवं माळवेयुमन् । उळिहदे सोसे चौडियकानं माडिपलु स्त्री-। कुळ-साहस-षड्-गुणदोन्द्- । अळव समाधियोळे मेरेदु मुडिफ्दिरलुते ॥ माळव्वेयुं चौडियसनुमेम्बिबर निषिधि ॥ [ श्री-मूलसंघ, देशिय-गण, पुस्तक-गच्छ और कोण्हकुन्दान्वयके अभयचन्द्रसिद्धान्तिक-चक्रवर्तीके शिष्य बालचन्द्र-पण्डित-देवकी प्रिय गृहस्थ-शिष्या,माळियक्के थी। चौडले और माळवेके पुत्र मलि-सेटिकी पद्मले और मलम दो पुत्रियाँ उत्पन्न हुई थी। बब यम ( मृत्यु ) ने क्रुद्ध होकर, मालवेको न बचाकर, उसकी पुत्रवधू चौडियक्कको भी मारा वह समाधिको प्राप्त हुई, और स्त्रियोचित भक्तिके ६ गुणोंको प्रदर्शित कर दिवंगत हुई। यह स्मारक (निषिधि) माझन्वे और चौडियक्क दोनोंका है। [ECXII, Gubbitl., Nob]
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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