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________________ से एक संवत् चलाया था जो कि विद्वानों के मत से सम् ७८ ई० से प्रारम्भ होता है । इतिहास के अनुसार कनिष्क ने सन् १०० ई० तक अर्थात् २२ वर्ष राज्य किया। इसके बाद उसके उत्तराधिकारी वासिष्क ने सन् १०८ तक, तत्पश्चात् उसके उत्तराधिकारी हुविष्क ने सन् १३% तक तथा उसके उत्तराधिकारी वासुदेव ने सन् १७६ तक राज्य किया। प्रस्तुत संग्रह में लेख नं० १६ में देवपुत्र कनिष्क लिखा है और राज्य सं ५ दिया है। इसी तरह लेख मं०२४ में महाराज राजातिराज देवपुत्र पाहि कनिष्क तथा राज्य सं० ७ दिया है और लेख नं० २५ में महाराज कनिष्क तथा सं०६ दिया गया है । इन लेखों के सिवाय लेख नं० १७,१८,१९,२०,२१.२६.२. २६,३०,३३ और ३४ में राजा का नाम तो अंकित नहीं है पर राज्य संवत्सर से मालूम होता है कि ये कनिष्क के ४थ वर्ष से लेकर २२वें तक के लेख है। लेख नं ३५-३८ तक कुषाण सं. २५ से २६ तक के हैं जो कि वासिष्क के के राज्य काल के होते हैं । यद्यपि इनमें राजा का नाम या तो दिया ही नहीं गया या स्पष्ट उत्कीर्ण नहीं हो पाया है । लेख नं०४० से ५६ तक के लेख कुषाण सं० ३१ से ६० के भीतर के हैं जो कि हुविष्क के शासनकाल के हैं। इनमें लेख नं. ४३,४५,४८,५० ओर ५६ में तो हुविष्क का नाम दिया हुआ है। लेख नं०५० से ७० तक कुषाण सं० ६२ से ६८ के अन्तर्गत हैं जो कि वासुदेव के राज्यकाल में पड़ते हैं उनमें से ६२,६५ और ६६ में तो चासुदेव का नाम भी दिया हुआ है। इतिहासज्ञों के मत से लेल नं० ६६ वासुदेव के राज्य को अन्तिम अवधि का द्योतक है। ___यहाँ लेखों के सम्बन्ध में यह सब विस्तार पूर्वक इस लिए लिखना पड़ा कि इस संग्रह में भूल से कतिपय लेखों पर दूसरे राजाओं का नाम दिया गया है जो कि इतिहासशों के लिये भ्रम उत्पन्न कर सकता है। इन राजाओं में कनिष्क, वासिष्क एवं हुविष्क तो बौद्ध धर्म प्रतिपालक थे और वासुदेव शैव मत का, पर अपने शासन में वे लोग अन्य धर्मों के प्रति बड़े उदार थे। इनके राज्यकाल में. जैन धर्म का हित सुरक्षित था और वह खूब समृद्ध स्थिति में था।
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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