SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२ मूर्विया बनाना प्रारम्भ की। जैन मातृकानों में श्रादिनाथ की यक्षिणी चश्वरी, तथा नेमिनाथ की अम्बिका देवी की मूर्तियां यहाँ मिली हैं। यक्ष धरणेन्द्र की सूर्ति भी मिली है। . इन मूर्तियों के सिवाय यहाँ नैगमेव नामक एक यक्ष की भी मुर्ति मिली है। नेगमेष या हरि नैगमेष जैन मान्यता के अनुसार सन्तानोत्पत्ति के प्रमुख देवता थे। इनकी पुरुष और स्त्री दोनों विग्रहों में मूर्तियाँ मिली हैं। संभवतः पुरुषशरीर की मूर्तियां पुरुषों के पूजने के लिए और स्त्रीशरीर की मूर्तियाँ स्त्रियों के लिए. थीं। इनका मुख बकरी के आकार का होता है। इनके हाथों या कन्धों पर खेलते हुए. बच्चे चिन्हित किये गये हैं | गले में लम्बी मोती की माला भी है जो कि इनका विशेष चित है। कुषाणकाल में इन मूर्तियों की विशेष पूजा होती थी। लेख नं० १३ ऐसी ही एक मूर्ति पर से लिया गया है। मथुरा से प्राप्त ये लेख ऐतिहासिक, धार्मिक एवं सामाजिक दृष्टि से बड़े महत्त्व के हैं। इनमें उल्लिखित शक एवं कुषाण राजात्रों के नाम तथा तिथियों से हमें उनके क्रमिक इतिहास तथा राज्य काल की अवधि का पता चलता है । लेख नं ५वें में स्वामी महाक्षत्रप शोडास का संवत्सर ४२ तथा मास दिन दिये हुए हैं। शोडास, महाक्षत्रप रंजुवुल का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था । रंजुवुल शक नरेश मोश्र के अधीन मथुरा का महाशासक था। यह मोश्र ईसा पूर्व ६० के लगभग अफगानिस्तान एवं पंजाब का शासक था। उसके अधीन मथुरा का शासक रंजुवुल पोछे स्वतंत्र हो गया था जैमा कि उसकी शाही उपाधियों से मालूम होता है । लेख में शोडास की स्वामी एवं महाक्षत्रय उपाधियाँ दी गई है जो कि उसके स्वतन्त्र शासक होने की परिचायक हैं । यदि उक्त लेख का संवत्सर ४२ विक्रम संवत् माना जाय जैसा कि स्टीन कोनो सा० का मत है, तो शोडास ईसा पूर्व १७-१६ में राज्य करता था । शकों के राज्य पर अधिकार करनेवाले थे कुषाण्वंशी राजा । इनका राज्य भारत वर्ष पर ईसा की प्रथम शताब्दी के मध्य से स्थापित हुआ था। इस वंश का सबसे बड़ा प्रतापी राजा कनिष्क हुन्मा, जिसने अपने राज्याभिषेक के समय
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy