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________________ चिक-मागाडि लेख सन्मुनि-सद्गुरु- कुवलय- । भृन्मति पोसतेनिसि नेगळ्दना-मुनिचन्द्रम् ॥ वृ || लोकमनावगं बेळगिदं नसदिं मुनिचन्द्र-देखन- । प्राकृत- जैन-योग-निळयं प्रकटीकृत [त]त्व-निर्णयम् । स्वीकृत-शब्द-शास्त्रनुररीकृत-तर्क-कळा-कळापन - रीकृत-काव्य-नाटकनघः कृत-मीनपताक-विक्रमम् ॥ कं ॥ तच्छिष्यं प्रकटीकृत-कीर त्ति-च्छत्रं भानुकोर्त्ति क्राणुर-ग्गण-भू- । मिच्छन तिन्त्रिणोक-सु- । गच्छं श्री- नुन-वंशनेसेदं नगदोळ ॥ वृ ॥ शान्त रसीत्थ- मूत्तिं दिगिभ - ब्रज- मस्तक - वर्ति-कीर्त्ति सैद्- । घान्तिक चक्रवत्ति जिन-पाद- निधान-सु-दीप-वत्ति चै । रन्तन - जैन- योगिसम-वर्त्तियेनल मुनि भानुकीर्त्ति पेम् - पं तळेदं स्व-मन्त्रि - गति धूर्त्त - जन कतिवर्त्तियेम्बिनम् ॥ नियतं तन्मुनिनाथ - शिष्यनेसेदं सन्मार्ग-सम्पत्तियिम् । नय कीर्त्ति - प्रति - नायकं विबुध-वाडा- दायकं जैन-त- । - यथार्थागम कायकं कृत-यशस - संस्नायकं ध्वंसिता- । भय - निस्यन्दित- पुष्पसायकनुदप्रौढार्य-सन्दायकम् ॥ `कन्द || अन्तेसेदाचार्य्यवळिय्- । इं तिळिदागमङ्गळं जिन - समयोच- । चिन्तामणि सं ( शं) कर-सा- 1 मन्तं शान्तियने माडि शङ्करनेनिपम् ॥ विदित-पराक्रमनेनिपा । कदम्ब-नृप-तिळक बोप्प-देवन राज्या- । भ्युदयके ताने मोदलेनि । सिदना - सामन्त-शङ्करं नयदिन्दम् ॥ १६५
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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