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________________ जैन - शिलालेख - संग्रह 'सत्-पक्केज षण्डङ्गलि कुवलयदिं नाग-पुन्नागदिन्दम् । ...... " तिळक-श्री-चम्पकामोददिनेसगु सदा भागवल्लि- बिलासम् । म्राज्य - लक्ष्मी निवासम् ॥ १७२ ... ... ... ... ..... गावणिग-कुलदे पुट्टिद । भाविसे फेरेय ... 480 410 ... ... ... ... य पोगळे पुट्टिद । केवळ देकि-सेट्टि वुध-सुर-भूज ॥ 000 ... ... सका ...... 488 ... ... ...... बिङ्कवेळम्बळ्ळिपोळम् । भोने बिन- गृहमम् माडि कीर्त्तिय ..... ... ... 1! ति गुरुवी-भानुकोचिं- वतीन्द्रम् | ... ति गुरुवी-भानुकीर्त्ति वतीन्द्रम् । जननि प्रख्यातेयादी दम् । तनगन्ता - पत्नि गङ्गाम्बिके बन-नुत-नी शङ्क-गावुण्ड मावं । जन-वन्दे लक्ष्मी-विळासम् ॥ फेरेयम- सेट्टिय सुतरेम् । किरु-कुळरे केतमरल ... ... ... सेट्टि कृतार्थम् । ... ... ... ......... 1 कल्प महीजम् । नेरेयेसेगं देकि-सेट्टि यनुबरु घरेयो । पाद-सरोब- भृङ्गनम् | ... 930 ... सु-कवि-जन-स्तुतं विबुध-कल्प- महीयन बष्णिकुं स 68. 930 ... शा- करि-दन्तव मुट्टो पर्व्वगुम् । ॥ विकसित-भव्य-पच- दिवाकरनेन् न-पद-पच-भङ्गम् ।
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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