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________________ जैन-शिलालेख संग्रह गोण्ड भुष-बल वीर-गङ्ग असहायर निःशङ्कप्रताप होयसळ-पीरबज्ञानदेव भीमद्-रावधानी दोरसमुदद नेलवाडिनलु सुक (ख )-संकथा-विनोददि राज्य गेबुत्ति() मन्मय-संवत्सरद मार्गसिर सु१ आदिवारदन्दु श्रीयादवनारायण-चतुर्वेदि-मङ्गलदल श्रीकरणद कलियणन कोडगेयोळ अय्यत्तु-कोळग गद्देय साहिर-कोळग बेदलेयं श्रीकरणद हेमाडे यण्णन कय्यनु बल्लाळ देगे कपद होन कोट सर्व-बाधा-परिहारवागि कोडहाळ-बसदिगे चन्द्राक्क-तारम्बर सल्वन्तागि धारापूर्वकं माडि येयण बिट दत्ति । [विस समय होयसळ वीर-वल्लाल-देष रावधानो दोरसमुद्रमें रहते हुए शासन कर रहे थे, उस समय कोडेहाल-वसदिके लिये कुछ जमीन यादवनारायण अग्रहारमें खरीदी गयी थी और वह बिना किरायेके दी गयी थी।] [ EC, III, Srirangapatan Ti., No. 148 ] ३८८ . श्रवणबेलगोला-संस्कृत क्या कसद । [शक १.११% 14ई० (कीकहान)] [.शि० सं०, प्र० मा०] ३८६ एलेवाल;-कार-मग्न [ 11-२३७६.] [पोय, मानव मन्दिरको पास पवागपर] ............ सेतु ।। ... .........सोकदिन्द सिद्दु. ... .. ..'मागपमिककदि बम्बीरदिन्द ... ... ... ण्डं बनियिसे नन्दनबनदिन्दन ... ... .........पनी-वनप ... ... ... ... मागवण्डद
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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