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________________ हेगूरके लेख भविकु कोण्डहिदझे गड़े गये केदारं कुरुक्षेत्रमेम्ब् । इवरोळ पेसदे पावर गोरवरं गो-वृन्दमं पेण्डिरम् । तवे कोन्दिक्किद पापमेग्दुगुमर्व बीळगं निगोदालोळ ।। वदत्ता परदत्ता वा यो हरेत वसुन्धराम् । षष्टि-वर्ष-सहस्राणि विष्ठायां वायते कृमिः ॥ [इस लेखमें बताया गया है कि जब ( अपनी उपापियों सहित) होसल बल्लाल-देव शाही नगर दोरसमुद्र में था, और शान्ति से राज्य कर रहा था( उक्त मितिको ) हेरगूकी बसदिके लिये ( उपर्युक) भूमि-दान किया । (उतकी प्रशंसा, जिनमेंसे एक यह भी है ) बब वह प्रयाण करता था, वो लाल, गुर्जर, गोल (2), पल्लक, और चोल राजाओंको भयका सञ्चार हो पाता था। [ EC, V, Hassan, TI., No. 58.] विजोको-संस्कृत [सं० १२३९% ०५ई.] लेख श्वेताम्बर सम्प्रदायका मालूम होता है। [JRAS, 1906, p. 700-701.] ३८७ क्यावनहलि-सब। मन्मवर्ष [ . ० (खू० पाइस)] [न्यातकारिक (सावनहरि नाजुके) में, कोदाराम मन्दिके पत्थर पर] __ श्रीमत्परमगम्भीर-स्थाद्वादामोघलाम्छनम् । बीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् ।। स्वस्ति भीमन्महामग्लेश्वर तळाडु-गङ्गवाहि-नोणम्बवाडि .
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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