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________________ जैन-शिलालेख-संग्रह ३६७ अगाडि-कचड़ भग्न । वर्ष तारण [ = ११६४ ई० (लू० राइस)।] [अङ्गडि ( गोणीवीडु परगना ) में, पाँचवें पाषाणपर ] ... ... ... ... ... .. श्री स्वस्ति समस्त-भुवनाश्रयं श्री-पृथ्वी वल्लभं महाराजाधिराज परमेश्वरं परम-भट्टारकं यादवकुलाम्बर-बुमणि सम्यक्त्व-चूड़ामणि मलेराज-राज मलेपरोळ गण्ड गण्ड-भरुण्ड कदन-प्रचण्डन सहाय-शूर सनिवार-सिद्धि गिरि-दुर्ग-मल्ल चलदङ्काम... ... ... ... ... ...'वीर-विजय नारसिंहदेखनुम् ॥ तारण-संवत्सरद चैत्र-सुद्ध.............. ''अन्दु सोसेवर पट्टणसामि नागि-शेटिटय... ... ... ... .."मय्यतुं... ... ... ... ... माडिद बसदि इदके कोट'. ... ... ... .. ..बिट्ट दत्ति । [(अपनी उपाधियों सहित ) वीर-विजय-नरसिंह-देवने ( उक्त मितिको ) उस 'बसदि' के लिये जिसे सोसवूर के 'पट्टण-सामि' नाग सेट्टि [ के पुत्र ]....." मय्यने बनवायी यां, दान दिया।] [ EC, VI, Mudgere tl., no 15.] ३६८ गिरनार-संस्कृत। -[शक १२१२-११६५ ई० - यह लेख श्वेताम्बर सम्प्रदायका मालूम पड़ता है। [ Revised Lists art. rem. Bombay ( ASI, XVI), p. 369, 20 27, t. and tr.]
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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