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________________ लेखों का जितना भारतीय इतिहास के - जैन धर्म और जैन समाज के इतिहास निर्माण में इन महत्व है वैसा ही भारतीय इतिहास के लिखने में भी है। अनेक परिच्छेदों के निर्माण करने में, उन्हें संशोधित एवं प्राप्त तथ्यों को दृढ़ करने में इन लेखों का बड़ा उपयोग है। भारतीय इतिहास के निर्माण में जैन साहित्यिक उपादानों की भले ही अब तक उपेक्षा हुई हो पर वर्षा, सर्दी एवं गर्मी के आघातों से सुरक्षित इन लेखों से प्राप्त श्रटल तथ्यों को अस्वीकार नहीं किया जा सकता । 1 प्रस्तुत लेख संग्रह: - प्रस्तुत लेखों का संग्रह श्रद्ध ेय पं० नाथूराम जी प्रेमी की सत्कृपा एवं प्रेरणा का फल है । इसके प्रथम भाग का संकलन एवं सम्पादन डा० हीरालाल जी जैन ने २८- २६ वर्ष पहले किया था। उक्त भाग में ५०० लेख श्रवण वेल्गोल और उसके आस पास के कुछ स्थानों के हैं । इसके बहुत वर्षों बाद श्रद्धय प्रेमी जी ने पं० विजयमूर्ति जी एम० ए० शास्त्राचार्य से द्वितीय एवं तृतीय भाग का संकलन कराया। इन दो भागों में ८४६ लेख संगृहीत हैं। इसके संकलन में प्रसिद्ध फ्र ेन्च विद्वान् स्व० ए० गेरानो द्वारा प्रकाशित जैन शिलालेखों को एक विस्तृत तालिका Repertoire Epigraphie Jaina की सहायता ली गई है। वह तालिका सन् १६०८ में प्रकाशित हुई थी, इसलिए इस संग्रह में उक्त सन् या उससे पहले तक के प्रकाशित लेख ही श्रा सके हैं, बाद का एक भी लेख नहीं। सभी लेखों का संग्रह तिथिक्रम से किया गया है। उनमें प्रथम माग में प्रकाशित लेखों का एवं श्वेताम्बर लेखों का यथास्थान निर्देश मात्र कर दिया गया है इससे ग्रन्थ का कलेवर बढ़ नहीं सका । सन् १६०८ से अब तक अनेक जैन लेख प्रकाश में आ चुके हैं। उनका भी तिथिक्रम से संकलन श्रावश्यक है । ग्रन्थमाला को चाहिये कि उन लेखों को भी संग्रह कराकर प्रकाशित करे । २ मथुरा के लेख: एक अध्ययन प्रस्तुत संग्रह में मथुरा से प्राप्त ८५ लेख संग्रहीत हैं। इनमें नं० ४ से लेकर १६ तक के लेखों को अक्षरों की बनावट की दृष्टि से डा० बूल्हर ने ईसा
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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