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________________ ६९ जैन - शिलालेख संग्रह लम्बी १ ही पंक्ति में है। इसके अक्षरोंका आकार श्रेष्ठी ( सेठ) पाणिधरके पुत्रोंका नाम दिया है । [ यह लेख मी २ इच करीब है इसका है इसमें उनके नाम है- त्रिविक्रम, आल्हण और लक्ष्मीवर । ] El, 1, no XIX no7 (P, 168 ) ३३० खजुराहो- संस्कृत जैन मन्दिरोंकी प्रतिमाओं पर से तीन शिलालेख [ बिना काल निर्देश का ] १ [ अ ] इपत्यन्वये श्रेष्ठ श्रीपाणिघर [I] [ यह अधूरा शिलालेख एक ही पंक्ति में है, जो कि ५ इञ्च लम्बी है । लगभग है इञ्च अक्षरोंका आकार है । ग्रहपति – अन्वयु । जैसे इस शिलालेख में है वैसे ही वह आगे दो शिलालेखों में भी आया है । [EI,I. P. 152.] ३३१ खजुराहो- संस्कृत [संवत् १२०५ = ११४८ ई०] [ इस शिलालेख के लेखक का पता नहीं है । इतना ही मालूम है कि यह संवत् १२०५ का है। ] [A. Cunningham, Reports, XXI, P. 68, 0, 8. ]
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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