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________________ कोल्हापुर के लेख 就變 २६ र्व्वकं सर्व्वनमस्थं सर्व्व- बाधा - परिहारमाचन्द्रार्कतारं सशासनं दत्तवान् ॥ २७ तदागामिभिरम्मद्वंश्यैरन्यैश्च । राजभिरात्मसुख - पुण्य-यशस्तन्तति-वृद्धिभिः । स्व २८ दत्ति - निर्विशेषं प्रतिपादनीयमिति । शान्तरसक्के ताने नेलेयाद २६ जिन प्रभु तत्र दैवमश्रान्त - गुणक्के ताने नेलेयाद तपोनिधि माघनन्दि सैद्धान्तिक - · ३० योगी तन गुरु । तन्नाधिपं विभु कामदेव - सामंतनिदुत्तमत्वमिदु पुण्यमिदुन्नति वासुदेवेन || भावार्थ [ यह शिलालेख कोल्हापुर शहरके शुक्रवार दरवाजेके पासके जैनमन्दिर के सामने एक पत्थर पर उत्कीर्ण है । शिलालेख में शीलदार कुलके महामण्डलेश्वर विजयादित्य देवके एक भूमिदान का उल्लेख है । पहले के दो श्लोकों में जैनधर्मके यश की गाथा गाई गई है । तत्पश्चात् ३-१५ तक की पंक्तियोंमें दाताकी निम्नलिखित वंशावली और उसका वर्णन है - शीलदार क्षत्रिय वंशमें जतिग नामका एक युवराज था, जिसके चार लड़के, गोङ्कल गूवल, कीर्त्तिरान, और चन्द्रादित्य थे । राजपुत्र गोकुलका लड़का मारिसिंह था । उसके पुत्र गूवलगङ्गदेव, बल्लालदेव, भोजदेव, तथा गण्डरादित्य-देव थे और गण्डरादित्यदेवका पुत्र महामण्डलेश्वर विजयादित्यदेव था । उनके ये पद थे- 'नगरपुरवराधीश्वर, श्री शिलाहारनरेन्द्र, निजविलास - विजित देवेन्द्र, जीमूतवाहनान्वयप्रसूत, शौर्यविख्यात, सुवर्णगरुड़ध्वज, युवतिजन -मकरध्वन, निर्दलित- रिपुमण्डलीक वर्णं, मरुवङ्क-सर्प अप्पन सिंग, सकलगुणतुङ्ग, रिपुमण्डलिक-भैरव, विद्धिष्टगज कण्ठीरव, इडुवरादित्य, कलियुग - विक्रमादित्य, रूपनारायण, नीतिविजितचारायण, गिरिदुल 1
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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