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________________ ( २ ) इसमें ऐसी बातों पर प्रकाश डाला गया है जो अभी तक अन्धकार और जिनकी र ध्यान देना इतिहासज्ञों के लिए परम श्रावश्यक है । इनमें से कुछ बातों की तरफ डा० हीरालाल जी ने 'प्राक्कथन' में हमारा ध्यान आकर्षित किया है । इन तीन भागों में वे सब लेख या गए हैं जिनकी सूची डा० गेरिनो ने संकलित की थी और जिसका नाम Repertoire de Epigraphie Jaina है। उक्त सूची के प्रकाशित होने के बाद और भी सैकड़ों लेख प्रकाश में चाये हैं और उनका प्रकाशित होना भी आवश्यक है । परन्तु माणिक्यचन्द्र ग्रन्थमाला का फड समाप्त हो गया है और इधर दीर्घकालव्यापिनी अस्वस्थता के कारण मेरी शक्तियों ने भी जबाव दे दिया है, इसलिए अब यह आशा तो नहीं हैं कि उक्त लेख संग्रह भी चौथे भाग के रूप में प्रकाशित कर सकूँगा । फिर भी विश्वास तो रखना ही चाहिए कि किसी न किसी इतिहास प्रेमी के द्वारा यह आवश्यक कार्य अविलम्ब पूरा होगा। मुझे सन्तोष है कि मेरी एक बहुत बड़ी आशा इन तीस वर्षों में किसी तरह पूरी हो गयो । दूसरे भाग के समान इस भाग का संकलन भी श्री विजयमूर्ति जी एम० ए०, शास्त्राचार्य ने किया है। इसमें उन्हें भी बहुत परिश्रम करना पड़ा है। विभिन्न लाइब्रेरियों में जाकर 'इण्डियन एण्टीक्वेरी', 'एपोग्राफिया इंडिका' आदि की पुरानी फाइलों में से प्रत्येक लेख को ढूँढ़ना, उन्हें रोमन लिपि से नागरी में उतारना और फिर उनका सारांश लिखना समयसाध्य और श्रमसाध्य तो है ही । इसके लिए वे भी धन्यवाद के पात्र हैं । ब २४-३-५७ नाथूराम प्रेमी मंत्री
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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