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________________ POP कर्नाटक प्रान्त के अन्य कई जैन केन्द्रों का नाम इन शिला लेखों से विदित होता है जैसे नन्दपर्वत (११४), तडताल (२३२), चामराज नगर (२६४), कैदाल (३३२), एलम्बल्लि (३४६), नित्तर (४३६-४४१, ४६६), हिरियमहालिंगे (४३८) कुन्तलापुर (४४९), सोरब (४५७), जोगमन्तिगे (१२१), कलस (५२२), होन्नेयनहल्लि (५५१), हरवे (६५२) श्रादि । (ई) तामिलदेश के अनेक जैन केन्द्रों में से केवल तीन स्थानों के लेख प्रस्तुत संग्रह में संगृहीत हो सके हैं। वल्ली मल्लैः – यह स्थान उत्तरी कट जिले के बन्दिवास तालुका में है I यह ६-१० वीं शताब्दी में जैन धर्म का केन्द्र था। यहां गंगराजा शिवमार के प्रपौत्र, श्रीपुरुष के पौत्र तथा रणविक्रम के पुत्र राचमल्ल सत्यवाक्य ने इस स्थान को अपने अधिकार में करके एक मन्दिर बनवाया था ( १३३ ) | यहां किसी बाणवंशी राजा के गुरु देवसेन की प्रतिमा स्थापित की गई थी । ये देवसेन भट्टारक भवान्दि के शिष्य थे ( १३६ ) । इस प्रतिमा की स्थापना एक जैन मुनि श्री अननन्दि भट्टार ने की थी ( १३५ ) । यहां से प्राप्त एक दूसरी प्रतिमा के लेख से मालुम होता है कि ये अज्जनन्दि भट्टारक बालचन्द्र के शिष्य थे और इन्होंने गोवर्धन भट्टारक की प्रतिमा की स्थापना की थी ( १३४ ) । एक (११५) से पञ्चपाण्डवमलैः – इस स्थान से प्राप्त दो लेखों में से ज्ञात होता है कि पल्लव राज नन्दि पोत्तरसर ( नन्दि ) ५० राज्य संवत्सर में पोन्नियक्कियार नामक यक्षी और नागनन्दि गुरु की एक पाषाण पर मूर्ति खुदवायी गई थी । ले० नं० १६७ से विदित होता है कि अपनी रानी की प्रार्थना पर वीर चोल ने तिरुप्पानमलै देवता के लिए एक गांव की आमदनी बाँध दी पर लेख पलिच्चन्दम् शब्द से मालुम होता है कि यहाँ एक प्रसिद्ध जैन बसदि थी । ये दोनों लेख ६ वीं, १० वीं शताब्दी के हैं । तिरुमलै - उत्तरी अर्काट जिले में यह स्थान ११ वीं शताब्दी के प्रारम्भ से ही जैन केन्द्र रहा है । इस नाम का अर्थ पवित्र पर्वत होता है । यहाँ सन्
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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