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________________ बड़नगरका लेख ८ दा-नक्षत्रे' इदं स्तम्भ समाप्तमिति ॥०॥ बाजुआ९ गगाकेन गोष्ठिक-भूतेन' इद स्तम्भं घटितमिति ॥०॥ १० [श]ककाल-[ब्द] सप्तशतानि चतुराशीत्यधिकानि ७८४ [1] [इस लेख में उल्लेख यह है कि परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर श्रीभोजदेवके राज्यमें जब लुअच्छगिरिपर ( देवगढ़का ही एक नाम मालूम पड़ता है-[एफ. कीलहॉन]) महासामन्त विष्णुरमका शासन था, नब जिस स्तम्भपर यह लेख खुदा हुआ है वह भाचार्य कमलदेवके शिष्य श्रीदेवके द्वारा श्री शान्तिनाथ मन्दिरके पास बनवाया गया था और यह विक्रम सं. ९१९ के आश्विन सुदी १४, बृहस्पतिवारके दिन उत्तर भाद्रपदा नक्षत्रके योगमें बनकर तैयार हुआ था। बनानेवालेका नाम गोष्ठिक वाजुआगगाक था। इसके अतिरिक्त, अन्तिम पंक्ति शक संवत् , अक्षरों और अङ्क दोनोंमें, ७८४ का निर्देश करती है। ] [El, IV, n° 44, A] बड़नगर--संस्कृत। . [सं० ९३२८८७५ ई.] १ तर प्रसिद्धम् श्री * * * क राज्ये यदु-कुल मल कु * । २ क्त्ययिविद्यनो तत्क्षेत्र भिबिभावितं अछोदेः श्री * ३ दियहागो धनपतेः ककुभि निर्ष मार्गः अस्य मुद्रुन् * ४ मिमस्य शशाङ्क तपनस्थितेः उमनेयं नवहट्टक । १ ऽयं स्तम्भः समाप्त इति' ऐसा पढ़ो। २ -भूतेनायं स्तम्भो घटित इति' पढ़ो। ३ ग्रो० बूल्हरकी रायमें 'गोष्ठिक' लोग धर्मदानोंका प्रबंध करनेवाली समितिके सदस्य थे, जिनको आजकलकी भाषामें 'ट्रस्टी' कह सकते हैं।
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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