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________________ १५२ जैन- शिलालेख संग्रह ५ स्यम् सं ९३३ वैशाखो सुदि १४ ॥ [ पथारिसे दक्षिणकी ओर करीब ३ मीeपर ज्ञाननाथ पर्वत की तलहटीमें एक झीलके किनारे बारो या बड़नगरके ध्वंसावशेष सुन्दर रीति से अवस्थित हैं । वहाँपर एक 'गडर- मर' नामका मन्दिर है, जो कि किसी गड़रियेका बनवाया हुआ था । इस गडरमर मन्दिरकी पश्चिम दिशा में छोटे-छोटे जैन मन्दिरोंका एक समूह है। उसके चतुष्कोण प्राङ्गणके बाहर एक चतुष्कोण छोटे पत्थरपर उक्त शिलालेख मिला था । ] [ A. Cummingham, Reports, V. p. 74 ] १३० सौदत्ति--संस्कृत तथा कन्नड़ । [ शक ७९७ ८७५ ई० ] लेख द्वादशग्रामाधिष्ठानस्य सुगन्धवर्तिनम ( सम्म )न्धिनि ॥ ग्रामे मूळगुन्दाख्ये । सीवटे पडू निवर्त्तनं । देवस्य ( ख ) चि (गु) दत्तं । नमयं (स् ) कन्नभूभुजा ॥ तस्य दक्षिणे भागे । तिन्तिणीवृक्षयोद्वयोः । मध्ये या स्थिता भूमि (ई ) ता श्रीकन्नभूभुजा । सुगन्धवर्त्तय सीमेयिन्द पद (डु ) बलू पिरियको मत्तर ६ ॥ श्रीमत्परमगम्भीरस्याद्वादामोघलांटनं ॥ जीया()लोक्यनाश्रस्य शासनं जिनशासनं ॥ श्रीमन्मैळापतीर्थस्य गणे कारेयनामनि [1) वभूवोतपोयुक्तः मूलभट्टारको गणी ॥ तच्छिष्यो गुणवान्सूरिः दुर्भाग्य से यह लेख दोनों ओर ( प्रारम्भ और अन्तमें) अधूरा ही हैं. इसलिये कनिघम साहब इधर-उधर कुछ शब्दोंकी पृत्तिके बजाय इसके पूर्णरूप से समझने में असफल रहे हैं । अतएव इसका विशेष सारांश भी नहीं दिया जा सका ।
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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