SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ देवगिरिका लेख [९] णपुण्यावाप्तिः- [1] अपि चोक्तम् [1] बहुभिर्वसुधा दत्ता ॥ [१०] [रा] जमिस्सगरादिभिः यस्य यस्य यादा]भूमिः तस्य तस्य तदा फलम् [1] [११] खदत्ता परदत्तां वा यो हरेत वसुन्धरां षष्टिवर्षसहस्र(स्रा) णी (णि) [१२] नरके पच्यते तु सः ॥ नमो नमः [1] ऋषभाय नमः ॥ [इस लेखमें कदम्ब 'युवराज' काकुस्थ (काकुत्स्य)वर्माके द्वारा श्रुतकीर्ति सेनापतिको दिये गये एक क्षेत्र-दानका उल्लेख है । यह दान खेटग्राम नामक गाँवमें किया गया था। [ई० ए०, जिल्द ६, पृ० २२-२४, नं० २० ] देवगिरि (जिला धारवाड़)-संस्कृत । सिद्धम् जयत्यहँस्त्रिलोकेशः सर्वभूतहिते रतः रागाधरिहरोनन्तोनन्तज्ञानदृगीश्वरः । स्वस्ति विजयवैजयन्त्यां खामिमहासेनमातृगणानुद्याताभिषिक्तानां मानव्यसगोत्राणां हारितीपुत्राणं(णां) अङ्गिरसां प्रतिकृतखाध्यायचर्चकानों सद्धर्मसदम्बानां कदम्बानां अनेकजन्मान्तरोपार्जितविपुलपुण्यस्कन्धः आहवार्जितपरमरुचिरसवः विशुद्धान्ययप्रकृत्यानेकपुरुषपरंपरागते जगप्रदीप भूते महत्यदितोदिते काकुस्थान्वये श्रीशान्तिवर्मातनयः १ यह पूर्ण विरामका चिह्न फजूल है। २ इन पत्रोंमें यह खास बात है कि जहाँ द्वित्वाक्षरोंका इतना अधिक प्रयोग किया गया है वहाँ 'सत्व' और 'तत्व में 'त' अक्षर द्वित्व नहीं किया गया ।
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy