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________________ ६६ जैन- शिलालेख संग्रह बदणेगुप्पे नामका सुन्दर गाँव दानमें प्राप्तकर अकालवर्ष पृथवी वल्लभ मन्त्रीने शकसंवत्सर ३०८ के माघ महीनेकी शुक्ल पञ्चमी, सोमवारको स्वाति नक्षत्र के समय इसे भेंट किया । यह गाँव पूनाडु छः हजारके एडेनाडु सत्तरके मध्यमें अवस्थित है । साथमें १२ 'कण्डुग' प्रत्येक छः आश्रित गांवोंमेंसे, तथा पोगरिगेल्ले और पिरिकेर्रे में से भी दिया । ] हल्सी (ज़िला बेलगाँव ) - संस्कृत । [ ई० पाँचवीं शताब्दिका ( फ्लीट ) ] प्रथम पत्र । [ १ ] नमः ॥ जयति भगवाजिनेन्द्रो गुणरुन्द्रः प्र[थि]त [ परम ] कारुणिकः [२] त्रैलोक्याश्वासकरी दयापताकोच्छ्रिता यस्य ॥ परम[ ३ ] श्रीविजयपलाशिकायां प्रजासाधारणा [शा] नाम् ॥ दूसरा पत्र; पहली ओर । [ ४ ] कदम्वानां युवराज : श्रीकाकुस्थवर्मा स्ववैजयिके अशीतितमे [५] संवत्सरे भगवनामर्हनाम् सर्व्वभूतशरण्यानाम् त्रैलोक्यनिस्तार [ ६ ] काणाम् खेटग्रामे बदोवरक्षेत्र [ म्] श्रुतकीर्तिसेनापतये ॥ दूसरा पत्र; दूसरी ओर । [ ७ ] आत्मनस्तारणार्थे दत्तवा [न्] [II] तद्यो [हि] न (ना) स्ति स्ववंश्यः [प] रवंश्यो वा [८] स पश्चमहापातकसंयुक्तो भवती (ति) [1] यो भिरक्षती (ति) तस्य सत्य ( सर्व्व, या सत्यं सव्र्व) गु 1
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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