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________________ जैन-शिलालेख संग्रह २३१ बाळहोन्नूर-संस्कृत [विना कालनिर्देशका;-पर संभवतः लगभग १०९० ई० का ] [बाळहोन्नूरमें, दूसरी चट्टानपर] श्रीमद्वादीभसिंहस्याजितसेन-महा-मुनेः । अपशिष्येण मारेण कृता सेयं निशीधिका ॥ अगणितगुणगणनिलयो जैनागम-वार्धि-बर्द्धन-शशाङ्कः । .."त्यूर्जित-मण्डलि......."र-गणे नत-गणाधीशः ॥ [वादीभासिंह भजितसेन महामुनिका यह स्मारक उनके प्रधान शिष्य मारके द्वारा बनवाया गया था । ये गणाधीश अगणित गुणोंके निलय (स्थान) थे, जैनागमरूपी समुद्र के पानीको बढ़ानेके लिये चन्द्रमा थे।] [EC. VI, Koppa td., n* 3.] कणवे-संस्कृत तथा कन्नड़ [वर्ष भाङ्गिरस, १०९३ ई० ? (लू. राइस)।] [कणवेमें, एक दूसरे समाधि-पाषाणपर] श्रीमत्परम-गम्भीर-स्याद्वादामोध-लाञ्छनम् । जीयात् त्रैलोक्यनायस्य शासनं जिनशासनम् ।। श्री-मूलसंघ-कोण्डकुन्दान्वय-देशीयगण-पुस्तकगच्छ लोकियब्बे बसदिय प्र........."तळताळ बसदि बळ "रं बळल्चुव लतान्त-सङ्गि"दि सञ्- । चळिसि पळञ्चि तूरन नडिसि मेवगेयाद-दूसरं । कळयदे निन्द कब्बुनद कग्गिद बिट्टिनमरकेवेत्त क। तळमेनिसित्तु पुत्तडद मेय्य मलं मलधारिदेवर ॥
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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