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________________ कणवेका लेख ३४९ श्रवणबेलगोला-संस्कृत [विना कालनिर्देशका [देखो, जैन शिलालेखसंग्रह, प्रथम भाग] २३० कणवे-संस्कृत तथा कन्नड़-भन्न [वर्ष शुक्ल. १०९० ई० ? (लू० राइस)।] [कणवेमें, कल्लु-बस्तिमें एक समाधि-पाषाणपर ] श्रीमत्परमगंभीरस्याद्वादामोघलाञ्छनम् । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् ।। साहस.............."महिमं जित-शत्रु धि......'होयसळा....." निळेयं सम्यक्त्व-चूडामणियने नेगळदं भण्डारि-चन्दिमय्यन प्रियेयु जिनपादाम्बुजम स्मरियसुत दिवकेय्-दिदरेन्दोडे कृतार्थरिन्नार् विखावनियोळु॥ खस्ति समस्त-प्रशस्ति-सहितं जिन-गन्धोदक-पवित्रीकृतोत्तमाङ्गनु भव्य-रत्नाकरन सरस्वती-देवी-कर्ण-कुण्डलाभरणनप्प श्रीमन्महा-प्रधान होयसळ-देवन भण्डारि चन्दिमय्यन हेण्डति बोप्पन्वेयु शुक्ल-संवत्सरद पौष्य-मासदल्लु सन्यासनं गेय्दु समाधि सहित सोमवारदेरडनेयजावदलु स्वर्ग-प्रापितरादर [जिनशासनकी प्रशंसा । प्रधान मंत्री होयसळ-देवके खजाजी चन्दिमव्यकी पत्नी बोप्पव्वेने (उक्त मितिको), संन्यसन करते हुए, समाधिपूर्वक . 'स्वर्ग' प्राप्त किया। . [ EC, VIII, Tirthahalli ti., n° 198.]
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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