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________________ सोमवारका लेख स्वस्ति श्रीमदाङ्गिरस -संवत्सर - पौष्य- मास- बहुळ-सप्तमियादित्यवारदन्दु अवर शिष्यरु शुभचन्द्र- देवर् समाधिविधियिं स्वर्गस्थ - रादरु । [ जिनशासनकी प्रशंसा । श्री-मूलसंघ, कोण्डकुन्दान्वय, देशिय-गण और पुस्तक- गच्छ, लोकियब्बे बसदिकी तलवाल बसदिके मलधारि-देव थे, कठोर तपस्यासे जिनका सारा शरीर धूल-धूसरित हो रहा था, लोहेके समान बहुत समयतक जिसपर जङ्ग-सी चढ़ी हुई थी, और वल्मीक ( चींटियोंकी खोदी हुई मिट्टीका ढेर ) के समान हो गया था । ( उक्त मितिको ), उनके शिष्य शुभचन्द्र-देवने समाधिके बलसे स्वर्ग प्राप्त किया । ] [ EC, VIII, Tirthahalli tl., n° 199.1 २३३ ३५१ हळे-बेलगोला - संस्कृत तथा कन्नड़ [ शक १०१५ = १०९३ ई० ] ( जैन शिलालेखसंग्रह, प्र० भाग ) २३४ सोमवार - कन्नड़ - भन्न [ शक १०१७ = १०९५ ई० ] [ सोमवार (मल्लिपट्टण परगने ) में, बसव मन्दिरकी एक सोटपर ] स्वस्ति''''भद्रमस्तु जिनशासनाय स्वस्ति शक वर्ष १०१७ नेय युवसंवत्सरद भाद्रपद - मासद सुद्ध - सप्तमी - गुरुवार दन्दु मकर लग्नं गुरूदयदल् श्रीमत् - सुराष्ट- गणद कल्नेलेय रामचन्द्र-देवर शिष्यन्तियरप्प अरसव्वे - गन्तियर ( यहाँ खत्म हो जाता है ) । [ ( उक्त मिति को ) सुराष्ट्र-गणके कल्नेलेके रामचन्द्र देवकी शिष्या भरसवे-गन्ति ......] [ EC, V, Arkalgad tl., n° 96.]
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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