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________________ मथुराके लेख २३ अनुवाद - सफलता हो । महाराज, राजाधिराज, देवपुत्र, शाहि कनिकके ७ वें वर्ष में, हेमन्तऋतुके पहले महीनेके १५ वें दिन ( अमावस्या ) (Lunar day ) मर्योदेहिकीय ( आर्य उद्देहिकीय ) गण और अर्थ - नागभुतिकिय ( आर्य नागभूतिकीय ) कुलके गणी अर्थ बुद्धिशिरि ( आर्य-बुद्धश्री ) के शिष्य वाचक अर्थ्य ( सन्धि ) ककी भगिनी अर्थ्य जया ( आर्य जया ) अर्थ गोष्ट...... [EL, 1, XLIII, n 19] २५ मथुरा -- प्राकृत | [ कनिष्क वर्ष ९...] १. सिद्ध महाराजस्य कनिष्कस्य संवत्सरे नवमे मासे प्रथ १ दिवसे ५ अस्य पूर्वाये कोट्टियातो गणातो भ जिमित २. .......वत्र दिस न बुद विकट [ यह महत्त्वपूर्ण लेख नववें संवत्, पहले महीने ( ऋतुका नाम लुप्त है ) पाँच दिनका है । यह महाराज कनिष्कके राज्यकाल (ईस्वी पूर्व ४८ ) का है । ] [A Cunningham, Reports, III, p. 31, n° 4. ] २६ मथुरा - प्राकृत । [ कनिष्कका १५ वाँ वर्ष ] अ. १. सं १० ५ गृ ३ दि १ अस्या पूर्व [[] य ब. १........हिकातो' कुलातो अजयभूति" स. १. स्य शिशीनिनं असङ्गमिकये शिशीनि.... द. १ अर्व्यवलये [ निर्वर्त्त ] नं १ 'सिद्ध' की पूर्ति करो । २ 'मेहिकातो' पढ़ो। ३ ' शिशीनिनं' पढ़ो |
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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