SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन-शिलालेख संग्रह अनुवाद-गोती (गौती माता) के पुत्र इन्द्रपाल (इन्द्रपा) के... ......महन्तोंकी पूजाके लिये..........."प्रतिमा....... [El, II, 'XIV, ..] गिरनारः-संस्कृत । [विक्रमसंवत् ५८] हुमदके पवित्र स्थानके आगनमें वृक्षके नीचे एक चौकोर चबूतरा है । उसके किनारेपर निम्नलिखित लिखा हुआ है: सं० ५८ वर्षे चैत्र वदी २ मोमे धारागले पं० नेमिचन्दशिष्य पंचाणचंदमूर्ति अनुवाद-संवत १८ के वर्षमें, सोमवार, चैत्र वदी २ को, धारागअमें नेमिचन्द्र के शिष्य पंचाणचंदकी मूर्ति । {ASI, IVI, p. 357, n° 20] मथुरा-प्राकृत । (विना कालनिर्देशका) १. भदंतजयसेनस्य आंतेवासिनीये २. धामघोपाये दानो पासादो [1] अनुवाद-भदन्त जयसेनकी शिष्या धमघोषा (धर्मघोषा) के दानस्वरूप यह मन्दिर है।" [El, II, n° XIV, n° 4 ] मथुरा-प्राकृत। भगवा नेमेसो भग-- अनुवाद-"भगवान नेमेस (नैगमेष), भगवान... [EI, II, D° XIV, A6]
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy