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________________ हुम्मचका लेख ३३३ श्रेष्ठी श्री बीबतसाह और उसकी पत्नी सेठानी पद्मावतीने की थी। इस लेखके ऊपरसे ए. कनिंघमने फलितार्थ यह निकाला है कि प्राचीन बौद मन्दिर ग्यारहवीं शताब्दिके जैनोंद्वारा अपने काममें लाया गया था। संभव है बौद्धमतकी हीनताके समय खजुराहामें जैनोंकी संख्या अधिक होनेसे उन्होंने उस प्राचीन बौद्ध मन्दिरको अपना बना लिया हो; या हो सकता है कि कनिंघमका यह अनुमान ही गलत हो कि गन्थरई-भग्नावशेष जैनोंका न होकर बौद्धोंका था। वस्तु, जो कुछ हो । इन खण्डित दि. जैन मूर्तियोंसे उस समय खजुराहोमें जैनधर्मकी प्रधानता योतित होती है।] [A. Cunningham, Reporte, II, p. 431, a.] २२६ हुम्मच-संस्कृत तथा कन्नड़ [शक १००९-१०८७ ई.] (उत्तरमुख) खस्ति-श्री-लसदुग्रवंश-तिलकः श्री-वीर-देवात्मजः दृप्यद्-वैरि-निकाय-दर्प-दळन-प्रादुर्भवद्-विक्रमः । सम्पूर्णेन्दु-करावदात-सु-यशोव्यालिप्त-दिग्-भित्तिकः श्रीमान् विक्रमशान्तरो विजयते लक्ष्मी-वधू-वल्लभः ।। ओदेदु तटत्तटेम्ब पद-ताटनेयिन्दे दिशा-गजादिगळ् । मदमुडुगिळ्दुवञ्जि पुगुविडे गाणने नागराजनुम् । कदळद गम्पदिन्दमेळे कम्पिसे कूडे कलङ्के सागरम् । बिंदिर्दलगिन्दे तारकि कळल् तरलोड्डुगनाईडोडुगुम् ।। अदिरदे बर्प चप्परिप कप्परि पाईलगोत्ति शास्त्रमम् । बिदिर्दु मरल मरल्चेनुते कुत्तुव कुत्तिदोडान्तु कहिदा-1 पददोळे सुत्ति मुत्तिदवोलेरने तोरुच गेण बिनणक्क् । ओदवुव बिनणं नेगळलोड्डग नीनरसङ्क-गाळनै ।
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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