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________________ जैन - शिलालेख - संग्रह २२४ मदलापुर - कन्नड़-भन्न [ काल लुप्त - पर संभवतः लगभग १०८० ई० ] [ मदलापुर (मलिपट्टण परगना ) में, गोणि वृक्षके नीचे एक पाषाणपर ] ( सामने ) खस्ति श्रीमनु''''वर्य- नवरस 'अरकेरेय बसदि माडितु इदके दु-गद्दे मण्णु अय्- गण्डुग पिरियदोळ्यूगण्डुग-मण्णु बिसवूर-मण्णु अय्-गण्डुग कोटेय मण्णु मृ-गण्डुग इनि बसदिगे सत्र-भूमि अदा-पदके अदटरादित्य अधिरत - पाण्ड्यय बेळतु "अरसर- कालदो श्रीम‘''मन्ने-'ग''''सित्रय्य'''' ३३२ गुड्डेय - मण्डळ कलाचन्द्र-सिद्धान्त देव भट्टारर शिष्यर्.... अमळचन्द्र भट्टारक..बसदिय माडि ...सल्सिद्......... ( हमेशाका अन्तिम श्लोक ) । सेनवो दे......... [ ...... नलरसने अरकेरेकी बसदि बनाई । ( उक्त ) भूमिका दान उसके लिये किया । जो कोई इसे नष्ट करेगा, वह अदटरादित्यके क्रोधका पात्र होगा । ....... भरसके समयमें, ....रमण्डल कलाचन्द्र- सिद्धान्तदेव भट्टारके शिष्य अमलचन्द्र भट्टारकने इस बसदिको बनवाया । हमेशाका अन्तिम श्लोक | सेनबोव दे] [ EC, V, Arkalgud tl. n° 102] २२५ खजुराहो- संस्कृत [सं० ११४२ = १०८५ ई० ] [ इस प्रतिमा-लेखके लेखका पता नहीं है, क्योंकि यह लेख एक खण्डित प्रतिमापरसे ए. कनिंघमने लिया है, जो कि प्रतिष्ठाकाळ और प्रतिमाके नामके सिवा और कुछ नहीं बताता । इस प्रतिमाकी प्रतिष्ठा या स्थापना
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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