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________________ सबर्ग में जब हम भारतीय 'भौगोलिक शाम के ऊपर दृष्टिपात करते हैं-सब उ निकाय स्वरूप को माठ प्रमुख युगों में विभाजित कर सकते हैं 1. सिंधु सभ्यता काल (श्रादिकाल से लेकर 1500 ई. पू. तक) 2. मैदिक काल ( 2000 ई. पू. तक) 3. संहिता काल (1500 ई. पू. तक) 4. उपनिषद् काल (1500 ई. पू. से 600 ई. पू. तक) ई. पू. से 600 ई. पू. तक) 5. रामायण- महाभारत काल (1600 से 6. जैन-बौद्ध काल (600 ई. पू. से 200 7. नया पौराणिक काल ( 200 से 800 ईसवी तक ) ई. तक) 8. मध्यकाल ( 800 से लगभग 16 बी बताब्दि तक) भारतीय भौगोलिक ज्ञान का यह काल विभाजन एक सामान्य दृष्टि से किया गया है । इन कालों मे मूल भौगोलिक परम्परा का विकास सुनिश्चित रूप से हुभा है । भूगोल (Geography) यूनानी भाषा के दो पदों Ge तथा grapho से मिलकर बना है । ge का प्रयं पृथ्वी धौर graphio का अर्थ वर्णन करना है । इस प्रकार geograpoy की परिधि मे पृथ्वी का वर्णन किया जाता है । भूगोल जिसे हम साधारणतः पौराणिकता के साथ जोड़ते चले प्राये है, प्राज हमारे सामने एक प्रगतिशील विज्ञान के रूप में खड़ा हो गया है। उसका उद्देश्य और मध्यमन काफी विस्तृत होता चला जा रहा है। उद्देश्य के रूप मे उसने मानव की उन्नति मौर कल्याण के क्षेत्र मे अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है इसलिए भाज वह प्रन्तरवैज्ञानिक ( lhterdisciplinary) विषय बन गया है । जैसे-जैसे भूगोल के अध्ययन का विकास होता गया विद्वानों ने उसे परिभाव से बांधने का प्रयत्न किया है । ऐसे विद्वामो में एकरमेन, ल्यूकरमैन, यीट्स रिहर, हेटनर, भादि विद्वान प्रमुख है जिनकी परिभाषाम्रो के माधार पर भूगोल की निम्नलिखित परिभाषा प्रस्तुत की जाती है-', भूगोल वह विज्ञान है जो पृथ्वी का अध्ययन तथा वन मानवीय ससार या मानवीय निवास के रूप में, 1. क्षेत्रों या स्थानो की विशेषता 2. क्षेत्रीय विविधतामों तथा 3. स्थानीय संबन्धों की पृष्ठभूमि में करता है । इस प्रकार भूगोल पृथ्वी पर वितरणों का विज्ञान है (Science ot distribution on Barth ) है । -A Dictionary ot mohkhause, F. D. geography, London, - भौगोलिक विचार धारा एवं विधितंत्र में कि
SR No.010109
Book TitleJain Sanskrutik Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages137
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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