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________________ चौरमा पका है। और तो सा, सीमावि बाईना में प्राकामी बों में श्रीराम कर निकाल पापा पाता प्रयोगाअन, कला संकल्लों से काम, विषय सम्हालय परीवारलायी। कपालीचार प्रभावी बात को होने है। साहलाई। इसमें पति हिलादि पापों से पनि प्रति उनसे दूर होने की चेष्टा नहीं करता, उन पापो को धर्म माता परमात पर्व भी पार का पलासा नहीं करता। ये मनोवृत्तिा दिवस पर कापोव या बालों की होती हैं। इस कारण जीप नरकवानी होता है। सैद्र ध्यान देशपती के भी बताया गया है परन्तु कि यह सम्मा-ष्टि होता है लिए उसका रोद्र ध्यान मरकादि गतियो का कारण नहीं होता बह निश्चित है कि बहा हिंसा, प्रसत्य, बोरी मादि अंसी सक्लेवमयी दुष्प्रवृत्तिया होती है यहां भक्ति के मन मे पार्मिक प्रवृत्ति का होना समय नहीं होता। वह मनोवंशानिकतम है। धर्म ध्यान (पार्मिक विषय पर चिंतन) चार प्रकार का है-मामाविषय, पपायविषय, विपाक विजय भौर सस्थान विषय ।बिनेन बनो के पुरखोका चितन करना और तदनुसार पदार्थों का निश्चय करना मासाविस है। रामदेषादि से उत्पन होने वाल वोषो को पयार्यालोचना तथा सम्मान के बाप बसों पर विचार करना अपायविषय भ्यान है । भानावरण पादि अष्टकमों के ब्रम्प, क्षेत्र, काल भव भोर भाव निमितक फनानुभवन का विचार विमा विषय है। और लोक के स्वभाव सस्थान बादि के स्वरूप पर विचार करना धर्मपान हलाता है। इन सभूचे भेदो मे जिन-सिवान्तो पर चितन, मनन मोर मनुकरण करने की प्रवृत्ति रखना उनका मुख्य कार्य प्रतीत होता है। उत्सम जमानि बस पो से मोत. प्रोत होने के कारण यह धर्मध्यान कहलाता है । चौथे, पांच पोर को मुण-स्थान वर्ती जीव इसके स्वामी होते है । यह ध्यान सम्यवर्शन पूर्वक होता है। पामाथि निसर्म कपि, उपदेश चिौर सूच कपि मे धर्म ध्यान के पार पक्षण है। पाचना, प्रतिश्या , परिवर्तना और धर्म कपा, बार उसके बावार है । भनित्य, बबरण, एकल और संसार, ये चार बर्म ध्यान की अनुप्रेक्षा है। यहां तक बीच जिनेन्द्र के 1. बवार्यवातिक 9.33. 2. भाभाविपासंस्थानविश्वायम्वत्या सून, 9.39
SR No.010109
Book TitleJain Sanskrutik Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages137
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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