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________________ परिवर्तित भी किया । मूल विषयों में से भनेक विषयों के उपविषयों की भी सूची इसमें सन्निहित है। इसके सम्पादन में तीन बातों का भार लिया गया:-(1) पाठों का मिलान, (2) विषय के उपविषयों का वर्गीकरण तथा, (3)श्री.पद्रवाद। मुल पाठ को स्पष्ट करने के लिए सम्पादकों ने टीकाकारों का भी मार लिया है। इस संकलन का काम भागम ग्रंथों तक ही सीमित रखा या फिर भी सम्पादन, वर्गीकरण तथा अनुवाद के कार्य में नियुक्ति, बूरिण, पति, मादि टीकामों का तथा सिद्धान्त ग्रंथों का भी यथास्थान उपयोग हमा है । दिगम्बर ग्रंथों का इसमें उल्लेख नहीं किया जा सका । सम्पादक ने दिगम्बर लेश्या कोश को प्रथक स्प से प्रकाशित करने का सुझाव दिया है। कोश-निर्माण में 43 ग्रंथों का उपयोग किया गया है। 7. बिया कोस इसके भी सम्पादक श्री मोहनलाल बांठिया मोर श्री श्रीचन्द घोरख्यिा है पौर प्रकाशन किया है जनदर्शन समिति कलकत्ता ने सन् 1996 में। श्री बांठिया जैनदर्शन के सूक्ष्म विद्वान् हैं। उन्होंने जैन विषय-कोश की एक लम्बी परिकल्पना बनाई थी और उसी के अन्तर्गत यह द्विनीय कोश क्रिया-कोश के नाम से प्रसिद्ध हमा । इस कोश का भी संकलन दशमलव वर्गीकरण के माधार पर किया गया है पौर उनके उपविषयों की एक लम्बी सूची है। क्रिया के साथ ही कर्म विषयक सूचनामो को भी इसमे अंकित किया गया है । लेश्या-कोश के समान ही इस कोश के सम्पादन में भी पूर्वोक्त तीन बातो का प्राधार लिया गया है इसमे लगभग 45 ग्रंथों का उपयोग किया गया है, ओ प्राय. श्वेताम्बर मागम अथ हैं। कुछ दिगम्बर मागमों का भी उपयोग हो सका है। सम्पादक ने उक्त दोनों कोथों के अतिरिक्त पुद्गल-कोश, दिगम्बर लेश्या कोश मोर परिभाषा कोश का भी संकलन किया था परन्तु अभी तक इनका प्रकाशन नहीं हो सका है। इस प्रकार के कोश जैनदर्शन को समुचित रूप से समझने के लिए निःसंदेह उपयोगी होते हैं। 8. नम रिक्शनरी Gaina Gem Dictionary का सम्पादन नवर्शन के मान्य विद्वान् जे० एल० जैनी ने सन् 1910 में किया था, जो भारा से प्रकाशित हुमा। श्री गैनी ने Heart of Jainism जैसे अनेक ग्रंथों को स्वतन्त्र रूप से तैयार किया और तत्वार्थ सूत्र से मान्य ग्रंथो का अंग्रेजी अनुवाद प्रस्तुत किया। जैनधर्म को अंग्रेजी के माध्यम से प्रस्तुत करने में सी० मार० जैन 'पौर जे. एल. जैनी का नाम अधिस्मरणीय रहेगा।
SR No.010109
Book TitleJain Sanskrutik Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages137
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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