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________________ बसेसन 501 की विस्तृत प्रस्तावना भी सिखी, जिसमें प्राकृत भाषामों का विहावमा भारतीय भारतीय भाषाओं के विकास में उनके योगदान की। किर की। समय के निर्माण में उन्होंने लममम 300 या NAME बिता प्रायः वाम्बर सम्प्रदाय से सम्बड है। सवय प्रक किसी अंच का प्रमाण भी दिया गया है। इस दृष्टि से यह कोस पविक : सका है । एक सब के जितने सम्भावित पर्व हो सकते है उनका भी कोशकार के उल्लेख किया है। संदिग्ध पाठ को कोष्ठक में प्रश्नचिह्न के साथ प्रस्तुत किया गया है। बहमास्या उनकी विद्वत्ता और सावधानता को सूचित करती है। प्रस्तुत पंथ के सम्पादक बी जुगल किशोर मुस्तार प्राचीन बन बिताके प्रसिद्ध अनुसन्धाता ये। उन्होने वीर सेवा मग्दिर जैसे सोष-संस्थान और उसके अनेकान्त जोशोष पत्र की स्थापना मोर उसका सम्यक संचालन कर बन विषा के अनुसंधान क्षेत्र में महत्वपूर्ण योग दिया है। बी मुख्तार स्वयं भी एक विशिष्ठ सबोषक रहे हैं। उन्होंने अपनी अवस्था के लगभग 50 वर्ष इसी कार्य में व्यतीत किये हैं। उनके ग्रंथो में स्वयंभूस्तोत्र, स्तुति-विचा, युक्त्यनुशासन, समीचीन धर्मशास्त्र, अध्यात्मरहस्य, जैन साहित्य मौर इतिहास पर विशद प्रकाश, देवायम स्तोत्र मादि सम्पादित मोर पनुवादित अब तथा शताषिक शोष-निबंध शोषकों के लिए मार्गदर्शक बने हुए हैं। पुरातन जैन वाक्य सूची वस्सुसः एक ढंग का कोश ग्रन्थ है, जिसमें 64 मूल अन्यों के पाव-बाय की प्रकारादिक्रम से सूची है। इसी में 48 टीकादि ग्रंथों में उद्. धृत प्राकृत-पच भी संग्रहीत कर दिये गये हैं। कुल मिलाकर पच्चीस हजार तीन सौ पावन प्राकृत-पचों की अनुक्रमणिका के रूप इस ग्रन्थ को तैयार किया गया है। इसके साधारभूत बंप विशेषत: दिगम्बर सम्प्रदाय के हैं। जहां-तहां प्राचार्य 'उक्तंच' लिखकर अपने पूर्वाचार्यों के पचों का उल्लेख करते रहे हैं जिनका खोजना कभी. कभी कठिन हो जाता है । इस दृष्टि से यह ग्रंथ शोधकों के लिए प्रत्यधिक उपयोगी बन पाता है। इसके सम्पादन में डॉ. दरबारीलाल कोठिया और पं. परमानन्द शास्त्री ने विशेष सहयोग दिया है। इसका प्रकाशन वीरसेवा मन्दिर से सन् 1950 में जमा । इस ग्रंथ की प्रस्तावना 168 पृष्ठ की है, जिसमें मुख्तार सा. ने सम्बन अन्यों और मावावो के समय और उनके योगदान पर गम्भीर चितन प्रस्तुत नान्य प्रशस्ति संग्रह इसका दो भावों में बीर सेवा मन्दिर से प्रकासन हुमा है। प्रथम भाग का सम्मान पं. परमानन्दनी के सहयोग से भी बुलपकिशोर मुख्तार ने सन् 1934
SR No.010109
Book TitleJain Sanskrutik Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages137
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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