SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 22 भगोया है । नन्दिसूत्र, उत्तराध्ययन] मरदि के उल्लेख तथा प्रमों का विस्तृत परिमाण इसे उत्तरकालीन मंग सिद्ध करता है । प्राचीन और प्रधान दोनों तरह के विषयों का समावेस यहां हो गया है । 5. विवाह पति : वार्तिक और षट्खण्डागम के अनुसार इसमें साठ हजार प्रश्नों का बाकर समाधान किया गया है। समवायांग में महसंख्या 36000 दी गई है विषय की दृष्टि से विशाल होने के कारण इसे 'भगवती' भी कहा जाता है इसमे 101 अध्ययन 10 हजार उसनकाल, 10 हजार समुद्देशन काल, 36 हजार प्रश्न और उनके उत्तर 288000 पद मीर संस्थात प्रक्षर है। वर्तमान में इसके 33 शतक मौर 1925 उद्देशक उपलब्ध हैं । इसका परिमाण 15750 श्लोक प्रमाण है। इसमें भी परिवर्तन-परिवर्धन हुमा है यहां रायपसेलीय, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति प्रादि जैसे उत्तरकालीन ग्रंथो से उद्धरण दिये गये हैं बीस के बाद के शतको को उत्तरकालीन माना जाता है । वनस्पति शास्त्र आदि की दृष्टि से भी यह ग्रंथ अधिक उपयोगी है । 6. गावाचम्मकाओ जय धवला में इसे 'गाहधम्मकहा 'मौर श्रभयदेव सूरि ने इसे 'ज्ञाता धर्म कथा' कहा है । श्वेताम्बर साहित्य में महावीर के वश का नाम ज्ञातृ निर्दिष्ट है जबकि दिमम्बर साहित्य में उन्हें 'नाथव शोय' बताया है । जो भी हो, इस ग्रन्थ में धर्म कथाएं प्रस्तुत की गई हैं चाहे वे महावीर की हों अथवा महावीर के लिए हो। इसमें दो भूत स्कन्ध हैं- प्रथम श्रुत स्कन्ध में 19 अध्ययन हैं और दूसरे त स्कन्ध मे 10 वर्ग है। दोनों श्रुतस्कन्धों के 21 उद्देशन काल हैं, 29 समुद्देशन काल है और 57,600 पद हैं। इसमें मेघकुमार, धन्नासार्थवाह, थावच्चापुत्र, सार्थवाह की पुत्रबधूमों, मल्ली भगवती, जिनपाल. तेतलीपुत्र प्रादि की कथाश्री का वर्णन है जिनके अध्ययन से जीवन के विविध पक्ष उद्घाटित किये गये हैं । सामाजिक इतिहास की दृष्टि से यह एक उपयोगी ग्रन्थ है । उपासक दशांग में दस श्रावकों का चरित्र वर्णन है - मानन्द, कामदेव, बुलपिता, सुरादेव, चुल्लशतक, कुण्डकोलिक, सकडालपुत्र, महाशतक, नंदिनीपिता, और सालर्तियापिता । प्रन्तकदशा सूत्र में नीम, मातंग, सोमिल, रामपुत्र, सुदर्शन, मलीक, प्रादि दस मन्तकृत केवलियों का वर्णन है । प्रश्न व्याकररणांग में प्राचीन रूप और प्रर्वाचीन रूप दोनों सुरक्षित हैं। विपाकत के दश प्रकरणों में प्रायुर्वेद, इतिहास, गोन, कला आदि सामग्री को एकत्रित किया गया है।
SR No.010109
Book TitleJain Sanskrutik Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages137
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy